Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
View full book text
________________
प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{336} चौदह गुणस्थानों में उत्तर बन्धहेतुओं की इस सामान्य चर्चा के पश्चात् किस गुणस्थान में उत्तर बन्धहेतुओं के कितने विकल्प (भंग) सम्भव होते है, इसकी भी विस्तृत चर्चा प्रस्तुत चतुर्थ कर्मग्रन्थ षडशीति और पंचसंग्रह के चतुर्थद्वार में की गई है। यहाँ भी हम उस समग्र चर्चा के विस्तार भय से बचने के लिए प्रत्येक गुणस्थान से सम्बन्धित उत्तर बन्ध हेतुओं के विकल्प की तालिका प्रस्तुत कर रहे है । यहाँ हमें विशेष रूप से यह ज्ञातव्य है कि इन तालिकाओं में षडजीवनिकायों के वध को सम्मिलित किया गया है, साथ ही नौ कषायों में जो हास्यषट्क है, उसमें एक साथ दो ही बन्ध होते है, इसीलिए उसे युगल नाम दिया गया तथा तीनों वेदों को अलग से परिगणित किया गया है। जब विकल्पों की संख्या निश्चित करना होती है, तो उसमें षडजीवनिकाय, नोकषाय युगल और तीन वेद इनको अलग मानना ही आवश्यक होता है । आगे हम सर्वप्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान में उत्तर बन्धहेतुओं के विभिन्न अपेक्षाओं से कितने विकल्प बनेंगे, इस हेतु आगे सात तालिकाएं प्रस्तुत कर रहे है । इसी क्रम से सास्वादन गुणस्थान में जो उत्तर बन्धहेतुओं के विकल्प बनते है, उसकी छः तालिकाएं प्रस्तुत की जा रही है । इसी प्रकार मिश्र गुणस्थान में उत्तर बन्धहेतुओं की भी सात तालिकाएं प्रस्तुत की जा रही है । चतुर्थ अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तीन तालिकाएं और पंचम देशविरतिसम्यग्दृष्टि गुणस्थान की पाँच तालिकाएं प्रस्तुत की जा रही है।
प्रस्तुत तालिकाएं हमने षडशीति नामक चतुर्थ कर्मग्रन्थ की धीरजलाल डाहयालाल मेहता के गुजराती विवेचन के आधार पर प्रस्तुत की है । उन्होने इन पाँच गुणस्थानों की ही तालिका प्रस्तुत की है । आगे के गुणस्थानों में बन्धहेतु की संख्या अल्प हो जाती है । अतः इस सम्बन्ध में तालिकाएं न देकर, केवल सामान्य रूप से ही चर्चा की गई है ।
मिथ्यात्व गुण स्थान में बन्ध हेतु
क्रमांक
बन्ध हेतु संख्या
बन्ध हेतु संख्या
EE
कषाय
वेद
योग
भय
| युगल
जुगुप्सा
कुलभंग /विकल्प
4.अविरति
०
44.मिथ्यात्व
१/१० बन्धहेतु
१०x Ix
३६०००
दो कायवध सहित ११ बन्धहेतु
१ २ ३ २ ५४|१५x|४x |२x
६००००
x
| ४६८००
३/एक कायवध और १
अनन्तानुबन्धी | x सहित ११ बन्धहेतु
४४
| x | १३x |
|
१ |x
| ३६०००
१ १०x
६x |४x |२४ | ३x |
एक काय और भय सहित ११ बन्धहेतु |एक काय और
जुगुप्सा सहित ११ बन्धहेतु
|१
| ३६०००
१ १ ३ . ५x | ५x|६x |४x |२x
१०x
कुलभंग | २०८८००
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org