Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP

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Page 531
________________ Jain Education Intemational परिशिष्ट - १ श्री मुक्ति सोपान श्री गुणस्थान रोहण अढीशतद्वारीका संक्षेपित यंत्र श्री मुक्ति सोपान श्री गुणस्थान रोहण अटीशतद्वारीका संक्षेपित यंत्र १२ ।१४ करण केवली केवली सदोष | साधु साधु सूक्ष्म गुण? FI.. जावे For Private & Personal Use Only ५ २३ ८ ९ १० ११ १२ १३ नाम द्वार मिथ्यात्व सास्वादन मिश्र | अवृति देशविरति । प्रमत्त अप्रमत्त | अपूर्व अनिवृत्ति । सूक्ष्म | उपशान्त क्षीणमोह सयोगी अयोगी समादृष्टि संयती संयती बादर सम्पराय मोह | अर्थ द्वार सत्यमें पडवाइ मिश्रित | समकित श्रावक निर्दोष उत्साहही निर्विषयी | ढकदिया क्षयकिया योगयुक्त योग रहित असत्यश्रवा मोह मोह केवल केवल ज्ञानी लोभी प्रश्नोत्तर क्या गुण? क्यों पड़े द्वार | ग्रीवक तक | धर्म स्पर्श | समझने तत्वज्ञ अव्रतरोकी | सर्वविरति | प्रमाद | बड़ी विषय से | अकषायी मोह । द्रव्ये के मोक्षगामी लगा छूटा कषाय से | भी निवृते हुवे | उद्धवने से बलीबली निवृते प्रवेश द्वार मूल स्थान धर्मप्रष्ट हानी बुद्धि | निसर्ग ७ प्रकृति ११ प्रकृति १५ प्रकृति | १६प्रकृति | २१ प्रकृति | २७प्रकृति २प्रकृति प्रकृतिघातीकर्म अक्रिय अधिगम क्षयोपशमी | उपशमी क्षयकरी लक्षण द्वार | ३४मिथ्यात्व आर्त-रौद्र शंकाशील ज्ञानी ६७ | धर्मोत्साही | दयामूर्ति धर्मोद्यमी धीर वीर पूर्णशील पूर्णसंतोषी | शान्त । परमशान्त | सर्वज्ञ मोक्षात्मा ध्यानी लक्षण | ५३ लक्षण | ६५लक्षण स्वभावी दृष्टान्त द्वार | ३६३ प्रसाद सिकरण नदी विषयव्यश्री | धना शेठ | उत्कृष्टार्थी | पंथानुगामी | फटादुग्ध | निरंगवस्त्र ढकी | बुजि निर्मल मेरू पर्वत पाखंडी अम्ब घड़ी | भोलाजीव काटोल १० श्रावक व्यापारी धन्ना प्रसन्न हरकेशी तम अग्नि अग्नि सूर्य | गजसुकमाल वमन अम्र सूर्य अणगार स्वामी कुंडरिक स्कंध मुनि | महावीर गुण द्वार अनंत अर्ध | शुक्ल पक्षी |७ बोलका ज३-उ-१५ : ३ भव | उसी भव: संसारी पुद्गल अबंध बारवा स्वर्ग कल्पातीत | कल्पतीत अनुतरवी में मोक्ष संसारी गमी गमी अंगु.असं. ज.६ उ. ज.१ हाथ: दो हथ: द्वार 9000 यों ५०० धनु. ५१० ५०० घ. 3 धनुष्य उत्पति द्रव्य अनन्त असंख्याते प्रत्येक प्रत्येक सौ १६२ ५४ १०८ प्रमाण हजार ६ ७ अवघेणा परिशिष्ठ-१........{475} www.jainelibrary.org

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