Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
View full book text
________________
प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा........
पंचम अध्याय ......{377}
मिश्र गुणस्थान में व्यक्ति की मनःस्थिति अनिश्चयात्मक होती है । अतः इस गुणस्थान में आयुष्य का बन्ध नहीं होता है। इस गुणस्थान में उदय और सत्ता की अपेक्षा से आयुष्य कर्म के १६ विकल्प होते हैं । नरक आयुष्य के तीन, देव आयुष्य के तीन, तिर्यंच आयुष्य के पाँच और मनुष्य आयुष्य के पाँच विकल्प होते हैं । इस प्रकार मिश्र गुणस्थान में आयुष्य कर्म के उदय और सत्ता की अपेक्षा से १६ विकल्प होते हैं ।
अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में चारों गति के जीव सम्भव है । इस चतुर्थ गुणस्थान में अवस्थित तिर्यंच और मनुष्य केवल देव आयुष्य का ही बन्ध करते हैं । जबकि देव और नारक केवल मनुष्यगति का ही बन्ध करते हैं। इस अपेक्षा से 'आयुष्य कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता को लेकर नरकगति के जीवों में चार विकल्प, देवगति में भी चार ही विकल्प होते हैं, किन्तु मनुष्य और तिर्यंचगति में छः-छः विकल्प होते हैं । इसप्रकार आयुष्य कर्म के चारों गतियों में बन्ध, उदय और सत्ता को लेकर २० विकल्प होते हैं ।
देशविरति गुणस्थान केवल तिर्यंच और मनुष्यों में ही पाया जाता है । देवों और नारकों में इसका अभाव होता है । अतः तिर्यंच और मनुष्य की अपेक्षा से छः-छः विकल्प होते हैं । इसप्रकार आयुष्य कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता को लेकर १२ विकल्प होते हैं ।
प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान- ये दो गुणस्थान केवल मनुष्य में ही पाए जाते हैं । आयुष्य कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता को लेकर पूर्वोक्त के समान ही मनुष्य में छः विकल्प होते हैं । ये छः विकल्प आयुष्य बन्ध के पूर्व, आयुष्य बन्ध के समय और आयुष्य बन्ध के पश्चात् इन तीन आधारों पर होते हैं । इन दोनों गुणस्थानों में बन्ध तो देव आयुष्य का होता है, उदय मनुष्य आयुष्य का होता है, किन्तु पूर्व गुणस्थान में यदि आयुष्य का बन्ध कर लिया हो, तो सत्ता चारों ही आयुष्य की सम्भव होती है। इसी आधार पर इस गुणस्थान में आयुष्य कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता को लेकर छः विकल्प होते हैं ।
अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसंपयराय और उपशान्तमोह इन चार गुणस्थानों में आयुष्य कर्म का बन्ध नहीं होता है । इन चार गुणस्थानों की विकास यात्रा उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी दोनों से सम्भव है । क्षपकश्रेणीवाला साधक अबद्ध आयुष्यवाला ही होता है । उपशमश्रेणीवाला साधक अबद्ध आयुष्य और बद्ध आयुष्य ये दोनों ही हो सकता है । इस अपेक्षा से इन चारों गुणस्थानों में आयुष्य कर्म के उदय और सत्ता की अपेक्षा से दो विकल्प ही होते हैं ।
क्षीणमोह गुणस्थान, सयोगीकेवली और अयोगीकेवली - इन तीनों गुणस्थानों में अबद्ध आयुष्यवाला क्षपक श्रेणीवाला जीव ही प्रवेश करता है । इन तीनो गुणस्थानों में आयुष्य कर्म के बन्ध का अभाव होता है। उदय और सत्ता केवल मनुष्य आयुष्य की होती है । इस प्रकार इन तीनों गुणस्थानों में एक ही विकल्प सम्भव होता है ।
इस प्रकार सप्ततिका नामक इस षष्ठ कर्मग्रन्थ में पूर्व में तीन घाती और तीन अघाती ऐसे छः कर्मों के विकल्पों की चर्चा की गई। घातीकर्मों में मोहनीय और अघाती कर्मों में नामकर्म के विकल्पों की चर्चा इसीलिए नहीं की गई है कि इन दोनों कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ अधिक है। षष्ठ कर्मग्रन्थ की ४८ से ५७ तक की गाथाओं में मोहनीय कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता को लेकर विभिन्न गुणस्थानों में कितने विकल्प बनते हैं, इसकी चर्चा की गई है । मोहनीय कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता के सम्बन्ध में विशेष बात यह है कि यहाँ तीनों के विकल्पों की अलग-अलग दृष्टि से भी चर्चा की गई है । गुणस्थानों की अपेक्षा सेव गुणस्थान में मोहनीय कर्मों की दो-दो प्रकृतियों का बन्ध होता है । इसमें तीन वेद में से एक समय में एक ही वेद का बन्ध होता है । इसी प्रकार दोनों युगलों (हास्य- रति, शोक - अरति) में से एक समय में एक युगल का ही बन्ध होता है । इसप्रकार मिथ्यात्व गुणस्थान में मोहनीय कर्म की दो-दो प्रकृतियों का बन्ध सम्भव होता है । सास्वादन गुणस्थान में मिथ्यात्वमोह का बन्ध न होने से २१ प्रकृतियों का बन्ध होता है । मिश्र गुणस्थान कषाय चतुष्क का अभाव होने से १३ प्रकृतियों का बन्ध होता है । प्रमत्त संयत गुणस्थान में पूर्वोक्त १३ में से प्रत्याख्यानीय कषाय चतुष्क का अभाव होने से ६ प्रकृतियों का ही बन्ध सम्भव होता है । अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरण गुणस्थान में भी ६-६ प्रकृतियों का ही बन्ध होता है । अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में हास्य- रति, भय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org