Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
सप्तम अध्याय........{429} विमलसूरि को बताया है । ये विमलसूरि कौन है और कब हुए हैं, यह ज्ञात नहीं है । हमारी जानकारी के अनुसार विमलसूरि विमलगच्छ के होने चाहिए, क्योंकि प्रस्तुत कृति विमलगच्छीय उपाश्रय, अहमदाबाद में हस्तप्रत के रूप में उपलब्ध है । हस्तप्रत की उपलब्धि के अभाव में इस सम्बन्ध में अधिक कुछ कहना सम्भव नहीं है।
गुणस्थानक्रमारोह” नामक तृतीय कृति का उल्लेख भी जिनरत्नकोष में उपलब्ध होता है । इस कृति के कर्ता जयशेखरसूरि उल्लेखित हैं । यह कृति भी हस्तप्रत के रूप में है । इस कृति का उल्लेख पाटण के अगली शेरी फोफलियावाड़ा के हस्तप्रतों की सूची में मिलता है । यह कृति भी अप्रकाशित है । अतः इसके सम्बन्ध में भी विशेष चर्चा करना सम्भव नहीं है।
गुणस्थान क्रमारोह १२ नामक चतुर्थ कृति का उल्लेख भी जिनरत्नकोष में उपलब्ध है । इस कृति के कर्ता जिनभद्रसूरि बताए गए है । इस कृति पर उनकी स्वोपज्ञवृत्ति भी उपलब्ध होती है । इस कृति का उल्लेख आमित्रा के द्वारा दस भागों में कलकत्ता से प्रकाशित हस्तप्रतों की सूची में आठवें भाग के १७२ वें पृष्ठ पर हुआ है । जहाँ तक हमारी जानकारी है कि यह कृति भी अभी तक अप्रकाशित है । अतः इस कृति के सम्बन्ध में भी हम अधिक कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं है।
गुणस्थान क्रमारोह के उपर्युक्त चार कृतियों के अतिरिक्त गुणस्थान सम्बन्धी अन्य कुछ कृतियों का उल्लेख भी हमें जिनरत्नकोष में उपलब्ध होता है । इनमें जिनानन्द भण्डार, गोपीपुरा, सूरत में उपलब्ध गुणस्थानद्वाराणि कृति का भी निर्देश है। जिनरत्नकोष में इसके कर्ता आदि का उल्लेख नहीं है। ____एक अन्य गुणस्थानमार्गणास्थान कृति का भी उल्लेख जिनरत्नकोष में हुआ है । गुणस्थानमार्गणास्थान नामक यह कृति प्राकृतभाषा में रचित है और इसके कर्ता के रूप में नेमिचंद्र का उल्लेख है । यह कृति हुम्मज के जैन भण्डार की सूची में उल्लेखित है। यह स्पष्ट रूप से दिगम्बर परम्परा में रचित है। संभावना यह हो सकती है कि यह कृति आचार्य नेमिचंद्र द्वारा रचित गोम्मटसार के गुणस्थान और मार्गणास्थान सम्बन्धी गाथाओं का स्वतन्त्र संकलन हो। जिनरत्नकोष के आधार पर ही गुणस्थानरत्नराशि०१५ नामक रत्नशेखरसूरि की एक अन्य कृति का उल्लेख हुआ है, किन्तु वस्तुतः यह कृति रत्नशेखरसूरि कृत गुणस्थानक्रमारोह से भिन्न नहीं है । यह गुणस्थानक्रमारोह का ही दूसरा नाम या अपरनाम है । ___उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त हर्षवर्धन गणिकृत गुणस्थानस्वरूप४१६ नामक एक कृति का उल्लेख भी जिनरत्नकोष में उपलब्ध है । यह कृति भी जैनानन्द भण्डार, गोपीपुरा, सूरत की सूची में उल्लेखित है । यह कृति भी अभी तक अप्रकाशित है । अतः इसके सम्बन्ध में भी अधिक कुछ जानकारी देना सम्भव नहीं है।
उपर्युक्त सूचनाओं से यह ज्ञात होता है कि गुणस्थान सम्बन्धी अन्य अनेक ग्रन्थ अभी भी हस्तप्रतों के रूप में भण्डारों में विद्यमान है । आवश्यकता है कि इन ग्रन्थों का सम्यक रूप से सम्पादन होकर प्रकाशित हो। हम आशा ही कर सकते हैं कि भावी पीढ़ी इस दिशा में सम्यक् गति करे ।
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४११ गुणस्थान क्रमारोह : लेखक जयशेखरसूरि, जिनरत्नकोषः वही । ४१२ गुणस्थान क्रमारोह : लेखक जिनभद्रसूरि, जिनरत्नकोषः वही। ४१३ गुणस्थान द्वाराणि : जिनानन्द भण्डार, गोपीपुरा, सूरत । ४१४ गुणस्थान मार्गणास्थान : लेखक आचार्य नेमिचंद्र, जिनरलकोषः पृ. १०६ ४१५ गुणस्थान रत्नराशि : रत्नशेखर सूरि, जिनरत्नकोषः वहीं । ४१६ गुणस्थान स्वरूप : हर्षवर्धन गणि, जिनरत्नकोषः वही ।
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