Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{374} बनी रहती है । इसप्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता के सम्बन्ध में प्रथम गुणस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थान तक एक-एक ही विकल्प होता है । तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में ज्ञानावरणीय कर्म की पाँचों प्रकृतियों के बन्ध, उदय और सत्ता-तीनों का अभाव होता है । अतः वहाँ कोई विकल्प नहीं है।
अन्तराय कर्म की भी पाँच प्रकृतियाँ हैं । इसमें भी प्रथम गुणस्थान से लेकर दसवें गुणस्थान तक अन्तराय कर्म की पाँचों प्रकृतियों का बन्ध, उदय और सत्ता रहती है। ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में अन्तराय कर्म की पाँचों प्रकृतियों के बन्ध का अभाव होता है, किन्तु उदय और सत्ता पाँचों प्रकृतियों की रहती है । इसप्रकार प्रथम गुणस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थान में एक-एक विकल्प होता है । तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में अन्तराय कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता का अभाव होता है । अतः वहाँ कोई विकल्प नहीं होता है।
घातीकर्मों में जहाँ तक दर्शनावरणीय कर्म का प्रश्न है, इसकी उत्तर प्रकृतियों के बन्ध, उदय और सत्ता को लेकर प्रथम गुणस्थान से सातवें गुणस्थान तक दो-दो विकल्प होते हैं। आठवें, नवें और दसवें गुणस्थान में चार-चार विकल्प होते हैं। ग्यारहवें गुणस्थान में दो विकल्प होते हैं । बारहवें गुणस्थान में तीन विकल्प होते हैं । तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में दर्शनावरणीय कर्म की सभी उत्तर प्रकृतियों के बन्ध, उदय और सत्ता का अभाव होने से कोई विकल्प नहीं होता है । किस गुणस्थान में दर्शनावरणीय कर्म की कितनी प्रकृतियों का बन्ध, उदय एवं सत्ता आदि होती है और कितने विकल्प हैं, इसे निम्न तालिका से समझा जा सकता है।
गुणस्थान में दर्शनावरणीय कर्म का सम्बन्ध
गुणस्थान
| विकल्प | बन्ध
उदय | सत्ता
प्रथम तथा द्वितीय २
तीसरे से सातवें
ज
तक
आठवाँ
प्रथम भाग में
0
नवाँ
10
द्वितीय भाग से आठवें गुणस्थान तक उपशमक और क्षपक को कुछ समय तक क्षपक को क्षपक को मतान्तर से उपशमक को
»
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दसवा
»
»
क्षपक को क्षपक को मतान्तर से
ग्यारहवाँ
»
बारहवाँ
»
०००
द्विचरसमय तक दूसरे कर्मग्रन्थ के मत से चरम समय में
»
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