Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
चतुर्थ अध्याय........{218} अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से कथित अन्तर के समरूप ही होता है।
काय मार्गणा में पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, और वायुकाय के सभी जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है, जिसका परिमाण असंख्यात पुद्गल परावर्तन है। वनस्पतिकाय के सभी जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट अन्तर अंसख्यात लोक परिमाण है । इस प्रकार स्थावरकाय की अपेक्षा अन्तर कहा गया है । त्रसकाय को छोड़कर उपर्युक्त पांचों स्थावरकायवाले जीव नियमतः मिथ्यादृष्टि होते हैं, अतः इस गुणस्थान की अपेक्षा विचार करने पर तो सभी जीवों की अपेक्षा और एक जीव की अपेक्षा से अन्तर नहीं है या उत्कृष्ट और जघन्य-इन दोनों अपेक्षाओं से अन्तर नहीं है। त्रसकाय में मिथ्यादृष्टि जीवों का अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार के कथन के अनुसार ही जानना चाहिए । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि सभी जीवों की अपेक्षा जैसा अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से कहा गया है, वैसा ही समझना चाहिए । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक दो हजार सागरोपम है । असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अप्रमत्तसंयत तक प्रत्येक गुणस्थान में रहे हुए सभी जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक दो हजार सागरोपम है । चारो उपशमकों के सभी जीवों की अपेक्षा जो अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से निर्देशित किया गया है, वही जानना चाहिए । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक दो हजार सागरोपम है । शेष गुणस्थानों का अन्तरकाल पंचेन्द्रियों के समान हैं ।
योगमार्गणा की अपेक्षा से काययोगी, वचनयोगी, और मनोयोगी मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत और सयोगी केवली गुणस्थानवर्ती सभी जीवों की अपेक्षा और एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवाले सभी जीवों की अपेक्षा जो अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से कहा गया है, वैसा ही समझना चाहिए । एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । चारों उपशमकों में सभी जीवों की अपेक्षा भी जो अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से निर्दिष्ट है, वैसा ही समझना चाहिए । एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । चारों क्षपक और अयोगी केवली गुणस्थानवी जीवों का अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार में जैसा कथन है, वैसा ही जानना चाहिए ।
वेदमार्गणा की अपेक्षा से स्त्रीवेदवाले मिथ्यादृष्टि सभी जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपना पल्योपम है । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि सभी जीवों की अपेक्षा जो अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से निर्देशित किया गया है, वही समझना चाहिए । सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में अन्तर्मुहूर्त है
और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ०६ पल्योपम पृथक्त्व है। असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत तक प्रत्येक गुणस्थान में रहनेवाले सभी जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ पल्योपम पृथक्त्व है। दोनों उपशमको में सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल, अन्तर-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्देशित है, वैसा ही जानना चाहिए। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ पल्योपम पृथ्क्त्व है। दोनों क्षपकों के सभी जीवों की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्ष पृथक्त्व१० है । एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है।
३०८ पाँच अन्तर्मुहूर्त कुछ कम पचपन पल्योपम । ३०६ स्त्रीवेद का उत्कृष्टकाल सौ पल्योपम पृथक्त्व है, उसमें से दो समय कम कर देने पर स्त्रीवेदवालों में सासादनसम्यग्दृष्टि का अन्तर आ जाता है ।
छ: अन्तर्मुहूर्त कम कर देने पर सम्यग्मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट अन्तर आ जाता है । वेदमार्गणा में दो उपशमक और दो क्षपक का ग्रहण इसीलिए किया
कि शेष दो उपशमक और क्षपक अवेदी होते हैं । ३१० साधारणतया क्षपकश्रेणी का उत्कृष्ट अन्तर छ: महीना है, पर स्त्रीवेद की अपेक्षा उसका उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व बतलाया है।
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