Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा........
चतुर्थ अध्याय........{264} के आधार पर यह माना जा सकता है कि 'असंख्येयगुणकर्मनिर्जरा' के रूप में वर्णित इन दस अवस्थाओं से ही गुणस्थान सिद्धान्त का विकास हुआ होगा ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि तत्त्वार्थसूत्र और उसके स्वोपज्ञभाष्य की हरिभद्रीय टीका में गुणस्थान सिद्धान्त का स्पष्ट एवं विस्तृत विवेचन तो कहीं प्राप्त नहीं होता है; किन्तु यत्र-तत्र जो संकेत उन्होंने दिए हैं, उससे इतना अवश्य फलित होता है कि आचार्य हरिभद्र गुणस्थान की अवधारणा से सुपरिचित थे और जहाँ उन्हें आवश्यक लगा, वहाँ सम्बन्धित सूत्रों की व्याख्या में उन्होंने गुणस्थानों की विविध अवस्थाओं का निर्देश ही दिया ।
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