Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{278} निर्जरारूप गुणश्रेणी होती है, अर्थात् प्रथम समय में अल्पप्रदेश निर्जरा, दूसरे समय में असंख्यगुणकर्मप्रदेशों की निर्जरा, तीसरे समय में उससे भी अधिक असंख्यगुण कर्मप्रदेशों की निर्जरा, इस तरह कर्म दलिकों के प्रक्षेप रहित केवल उदय द्वारा कर्मप्रदेशों की निर्जरा रूप गुणश्रेणी होती है।
समकालिक गुणश्रेणियाँ : मनुष्य भव में जो गुणश्रेणियाँ होती है, उनमें सम्यक्त्व की, देशविरति की और सर्वविरति की -
पुणश्रेणियाँ समकालिक भी हो सकती है । इसी प्रकार देशविरति की, सर्वविरति की और अनन्तानुबन्धी विसंयोजना की-ये तीन गुणश्रेणियाँ भी समकालिक हो सकती है, किन्तु परभव में तो सम्यक्त्व, देशविरति, सर्वविरति-ये तीन गुणश्रेणियाँ ही समकालिक होती है । देशविरति की और अनन्तानुबन्धी विसंयोजना की-ये गुणश्रेणियाँ भी मनुष्यभव में समकालिक हो सकती है। सम्यक्त्व, देशविरति- इन दो गुणश्रेणियों का भी समकालिक होना सम्भव है। क्षपक, क्षीणमोह, सयोगी और अयोगी-इन चार गुणश्रेणियों के अतिरिक्त शेष सात गुणश्रेणियाँ देवभव में साथ जा सकती है।
गुणश्रेणी और कर्मप्रदेश निर्जरा : सम्यक्त्व गुणश्रेणी में जितने कर्मप्रदेशों की निर्जरा होती है, उससे असंख्यगुणा कर्मप्रदेशों की देशविरति गुणश्रेणी में निर्जरा होती हैं । इनसे भी असंख्यगुणा-असंख्यगुणा कर्मप्रदेश सर्वविरति गुणश्रेणी में निर्जरित होते हैं । इसप्रकार ग्यारह गुणश्रेणियों में अनुक्रम से असंख्य-असंख्य गुणा कर्मप्रदेशों की निर्जरा होती है ।
गुणश्रेणी का काल : अयोगीकेवली गुणश्रेणी का अन्तर्मुहूर्त रूप प्रवृत्ति काल शेष दस गुणश्रेणियों में प्रत्येक के काल से अल्प है। उससे सयोगी गुणश्रेणी का काल संख्यातगुणा है, उससे क्षीणमोह गुणश्रेणी का काल संख्यातगुणा अधिक है। इसी प्रकार उलटे क्रम से यावत् सम्यक्त्व गुणश्रेणी का काल देशविरति गुणश्रेणी के काल से संख्यातगुणा अधिक है कि अन्तर्मुहूर्त जितना ही है। ज्ञातव्य है कि अन्तर्मुहूर्त काल में अनेकानेक वर्ग होते हैं ।
इसप्रकार जैसे-जैसे सम्यक्त्वादि आत्म गुण की प्राप्ति के समय कर्मनिर्जरा का काल क्रमशः अल्प होता जाता है, तो भी क्रमशः अल्प होते हुए उस काल में कर्मनिर्जरा तो अधिकाधिक होती है।
भवान्तर में होनेवाली तीन गुणश्रेणियाँ : सामान्यतया कोई भी गुणश्रेणी अर्थात् प्रति समय कर्मों को अधिकाधिक क्षय करने की प्रक्रिया उसी भव में प्रारम्भ होकर उसी भव में समाप्त हो जाती है, किन्तु सम्यक्त्व देशविरति और सर्वविरति-ये तीन गुणश्रेणियाँ ऐसी है, जो इस भव में प्रारम्भ होकर भवांतर में भी पूर्ण होती है । दूसरे शब्दों में इन गुणश्रेणियों की रचना तो वर्तमान भव में होती है, किन्तु उनकी निर्जरा की पूर्णता अग्रिम भव में भी होती है। उदाहरण के रूप में यदि कोई जीव सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए गुणश्रेणी प्रारम्भ करता है, किन्तु उस गुणश्रेणी को पूर्ण करने के पूर्व ही मिथ्यात्व के उदय से अशुभ मरण को प्राप्त करके नरक, तिर्यंच या मनुष्य-गति में जन्म ग्रहण करता है, तो उसकी वह गुणश्रेणी मध्य में ही समाप्त हो जाती है। परंतु यदि कोई नारक अथवा तिर्यच सम्यक्त्व की प्राप्ति के निमित्त गुणश्रेणी प्राप्त करके मध्य में ही शुभ मरण अर्थात् मनुष्य या देवगति को प्राप्त होता है, तो उसके द्वारा वह प्रारम्भ की गई गुणश्रेणी अग्रिम भव में पुनः प्रारम्भ होकर समाप्त होती है। ग्यारह गुणश्रेणियों में केवल सम्यक्त्व, देशविरति और सर्वविरति-ये तीन गुणश्रेणियाँ ऐसी है जो परभव में साथ जाती है, अर्थात् वे इस भव में प्रारम्भ होकर अग्रिम भव में पूर्णता को प्राप्त होती है। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि ये गुणश्रेणियाँ शुभ मरण की स्थिति में ही परभव में साथ जाती हैं, अशुभ मरण की स्थिति में नहीं । यहाँ शुभ मरण से तात्पर्य यह है कि वर्तमान योनि की अपेक्षा श्रेष्ठ योनि को प्राप्त होना । किसी नारक का मनुष्य बनना, यह शुभ मरण है अथवा किसी तिर्यंच का मनुष्य या देव बनना शुभ मरण है । किसी मनुष्य का देव बनना शुभ मरण है, किन्तु इसके विपरीत किसी मनुष्य का तिर्यंच या नारक बनना अथवा तिर्यंच का नारक बनना अशुभ मरण है। सम्यक्त्व की गुणश्रेणी कोई नारक भी प्रारम्भ कर सकता है। सम्यक्त्व और देशविरति की गुणश्रेणियाँ तिर्यंच के भव में ही सम्भव है, किन्तु सर्वविरति की सम्भव नहीं है । सम्यक्त्व, देशविरति और सर्वविरति-ये तीनों गुणश्रेणियाँ मनुष्य भव में ही सम्भव है । ये तीनों गुणश्रेणियाँ पृथक्-पृथक् भी होती हैं और युगपत्, एक साथ भी हो सकती हैं, किन्तु इन तीनों गुणश्रेणियों का युगपत् रूप से होना मनुष्य भव में ही सम्भव है । तिर्यच में सम्यक्त्व और देशविरति में दो गुणश्रेणियाँ एक साथ हो सकती है, किन्तु नारक में मात्र सम्यक्त्व गुणश्रेणी ही होती है।
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