Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा.......
चतुर्थ अध्याय........{208) पंचेन्द्रिय जीव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श करके रहे हुए हैं।
कायमार्गणा में स्थावरकायिक जीव सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करके रहे हुए हैं और त्रसकायिक लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श करके रहे हुए हैं ।
योगमार्गणा में मिथ्यादृष्टि वचनयोगी और मनोयोगी जीव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम आठ५५ भाग क्षेत्र का और सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणकषाय गुणस्थानवाले जीवों का स्पर्शक्षेत्र लोक का असंख्यातवाँ भाग हैं । सयोगीकेवली जीवों का स्पर्शक्षेत्र लोक का असंख्यातवाँ भाग है।२५५ऐसे जीव मेरुपर्वत के मूल से नीचे एकेन्द्रियों में या नारकीयों में मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते यह उक्त कथन का तात्पर्य है । मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगीकेवली गुणस्थान तक के काययोगवाले और अयोगीकेवली जीवों का स्पर्शक्षेत्र सामान्य की अपेक्षा से जैसा कहा वैसा ही है, अर्थात् लोक का असंख्यातवाँ भाग है।।
वेदमार्गणा में मिथ्यादृष्टि स्त्रीवेदवाले और पुरुषवेदवाले जीव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का तथा लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम आठ२५७ रज्जु क्षेत्र का और सम्पूर्ण लोक परिमाण क्षेत्र का स्पर्श करते हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि लोक के असंख्यातवें क्षेत्र का तथा लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग का और कुछ कम नौ५६ भाग क्षेत्र का स्पर्श करते हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिबादर गुणस्थान तक के जीव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श कर सकते हैं । नपुंसकवेदवालों में मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों का स्पर्शक्षेत्र सामान्य६० की अपेक्षा से कहे गए के अनुसार हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम छ:२६० भाग क्षेत्र का स्पर्श करते हैं तथा प्रमत्तसंयत से लेकर अनिवृत्तिबादर गुणस्थान तक के जीव लोक के असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते
कषायमार्गणा की अपेक्षा से क्रोधादि चारों कषायवाले जीवों और कषाय रहित जीवों का स्पर्शक्षेत्र स्पर्श अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से उल्लेखित क्षेत्र के समान ही है।
ज्ञानमार्गणा में मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों का स्पर्शक्षेत्र स्पर्श अनुयोगद्वार में जो सामान्य रूप से कहा गया है, वही है । विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टियों का स्पर्शक्षेत्र सामान्यतया लोक का असंख्यातवाँ भाग तथा गमनागमन आदि की अपेक्षा से त्रसनाड़ी का कुछ कम आठ भाग२६२ और मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा सम्पूर्ण लोक२६३ है।
२५५ मेरुतल से नीचे कुछ कम दो रज्जु और ऊपर छः रज्जु । यह स्पर्श विहार, स्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियक पद की अपेक्षा प्राप्त होता है। २५६ समुद्घात के काल में मनोयोग और वचनयोग नहीं होता है, इससे वचनयोगी और मनोयोगी सयोगी केवली का स्पर्श लोक के असंख्यातवें भाग
परिमाण बताया है। २५७ मेरुतल से नीचे कुछ कम दो रज्जु और ऊपर छः रज्जु । यह स्पर्श विहार वत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियक समुद्घात की अपेक्षा प्राप्त होता
है। सम्पूर्ण लोक स्पर्श मारणान्तिक और उपपाद पद की अपेक्षा प्राप्त होता है । २५८ मेरुतल से नीचे कुछ कम दो रज्जु और ऊपर छः रज्जु । यह स्पर्श विहार वत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियक समुद्घात की अपेक्षा प्राप्त होता
२५६ मेरुपर्वत तल से नीचे कुछ कम दो रज्जु और ऊपर सात रज्जु । यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा प्राप्त होता है । २६० यहाँ नपुंसकवेदवाले मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव का स्पर्श सामान्य कथन के समान है, अर्थात् यह सामान्य निर्देश है। विशेष की
अपेक्षा मिथ्यादृष्टि नपुंसकवेदवाले वैक्रियक समुद्घात की अपेक्षा पाँच धन रज्जु क्षेत्र का स्पर्श कर सकते हैं, क्योंकि वायुकायिक जीव इतने क्षेत्र में विक्रिया करते हुए पाए जाते हैं । नपुंसकवेदवाले सासादनसम्यग्दृष्टि स्वस्थवान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियक समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श करके रह सकते हैं। उपपाद की कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भाग (११/१४) त्रसनाड़ी का स्पर्श करते
हैं। मारणान्तिक पद की अपेक्षा कुछ कम बारह बटे चौदह भाग (१२/१४) त्रसनाड़ी का स्पर्श करते हैं । शेष कथन सामान्य कथन के समान हैं। २६१ यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा है । २६२ यह स्पर्श विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियक समुद्घात की अपेक्षा प्राप्त होता है, क्योंकि मध्यलोक से नीचे दो रज्जु और ऊपर छः
रज्जु क्षेत्र में गमनागमन देखा जाता हैं । २६३ यह स्पर्शक्षेत्र मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा प्राप्त होता है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि विभंगज्ञानी जीव सम्पूर्ण लोक में मारणान्तिक समुद्घात कर सकते
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