Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(यत्) शीर्षच्छेदं नित्यमर्हति-शीर्षच्छेद्यः शूरः। (ठक्) शैर्षच्छेदिक: शूरः । प्रत्ययसन्नियोगेन शिरस: शीषदिशो निपात्यते।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (शीर्षच्छेदात्) शीर्षच्छेद प्रातिपदिक से (नित्यम्) सदा (अर्हति) कर सकता है, अर्थ में (यत्) यत् (च) और (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है।
उदा०-(यत्) शीर्षच्छेद (शिर काटना) को जो नित्य कर सकता है वह-शीर्षच्छेद्य शूर। (ठक्) शैर्षच्छेदिक शूर।
सिद्धि-(१) शीर्षच्छेद्यः । शीर्षच्छेद+अम्+यत् । शीर्षच्छेद्+य । शीर्षच्छेद्य+सु । शीर्षच्छेद्यः।
यहा द्वितीया-समर्थ शीर्षच्छेद्' शब्द से नित्यमहति अर्थ में इस सूत्र से 'यत्' प्रत्यय है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। प्रत्यय-सम्बन्ध से 'शिरस्' के स्थान में शीर्ष-आदेश निपातित है।
(२) शैर्षच्छेदिकः । यहां द्वितीया-समर्थ शीर्षच्छेद' शब्द से नित्यमर्हति अर्थ में 'आदिगोपुच्छ०' (५।१।१९) से यथाविहित ठक्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ह' के स्थान में इक आदेश, अंग को आदिवद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। यः
(४) दण्डादिभ्यो यः।६५। प०वि०-दण्ड-आदिभ्य: ५।३ य: १।१। स०-दण्ड आदिर्येषां ते दण्डादय:, तेभ्य:-दण्डादिभ्य: (बहुव्रीहि.)। अनु०-तत्, अर्हति इति चानुवर्तते । अन्वय:-तद् दण्डादिभ्योऽर्हति यः।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थेभ्यो दण्डादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्योऽर्हतीत्यस्मिन्नर्थे यः प्रत्ययो भवति।
उदा०-दण्डमर्हति-दण्ड्य: । मुसलमर्हति-मुसल्य:, इत्यादिकम् ।
दण्ड । मुसल। मधुपर्क । कशा । अर्ध । मेधा । मेघ । युग । उदक। वध । गुहा। भाग। इभ । इति दण्डादयः ।।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (दण्डादिभ्यः) दण्ड आदि प्रातिपदिकों से (अर्हति) कर सकता है, अर्थ में (य:) य प्रत्यय होता है।
उदा०-दण्ड को जो धारण कर सकता है वह-दण्ड्य। मुसल (मूसळ) को जो धारण कर सकता है वह-मुसल्य इत्यादि।
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