Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् वेतन से खरीदा गया-द्विवर्ष कर्मकर। (भूत) जो दो वर्ष का हो चुका है वह-द्विवर्ष दारक (बच्चा)। (भावी) दो वर्ष तक होनेवाला-द्विवर्ष समाज।
सिद्धि-द्विवर्षम् । द्विवर्ष+टा/अम्+ख/ठञ् । द्विवर्ष+० । द्विवर्ष+सु । द्विवर्षम्।
यहां तृतीया तथा द्वितीया विभक्ति-समर्थ, द्विगुसंज्ञक, कालविशेषवाची, 'द्विवर्ष' प्रातिपदिक से निवृत्त आदि पांच अर्थों तथा चेतन अर्थ अभिधेय में विहित प्रत्यय का इस सूत्र से नित्य लुक होता है। वर्षाल्लुक च' (५।११८७) से 'द्विवर्ष' शब्द से ख, ठञ् और उनके लुक् का भी विधान किया गया था। इस सूत्र से चेतन अर्थ अभिधेय में नित्य लुक का विधान किया गया है। निपातनम्
(६) षष्टिकाः षष्टिरात्रेण पच्यन्ते।८६। प०वि०-षष्टिका: १।३ षष्टिरात्रेण ३१ पच्यन्ते क्रियापदम्।
स०-षष्टीनां रात्रीणां समाहार: षष्टिरात्रः, तेन षष्टिरात्रेण (द्विगुतत्पुरुषः)। अत्र तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।१।५१) इति समाहारे द्विगुतत्पुरुषः। 'अह:सर्वेकदेशसंख्यात् (५।४।८७) इति समासान्तोऽच् प्रत्यय: । ‘रात्रालाहा: पुंसि' (२।४।२९) इति च पुंस्त्वम् ।
अनु०-तेन इत्यनुवर्तते। अन्वय:-तेन षष्टिरात्रात् पच्यन्ते षष्टिका: ।
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थात् षष्टिरात्र-शब्दात् प्रातिपदिकात् पच्यन्ते इत्यस्मिन्नर्थे 'षष्टिका:' इति पदं कन्प्रत्ययान्तं निपात्यते, रात्रिशब्दस्य च लोपो भवति । षष्टिका:' इत्यत्र बहुवचनमप्रधानम् ।
उदा०-षष्टिरात्रेण पच्यन्ते-षष्टिकाः । एषा धान्यविशेषस्य संज्ञा वर्तते।
आर्यभाषा: अर्थ-तृतीया-समर्थ (षष्टिरात्रेण) षष्टिरात्र प्रातिपदिक से (पच्यन्ते) पकाये जाते हैं, अर्थ में (पष्टिका:) षष्टिक शब्द कन्-प्रत्ययान्त निपातित है, निपातन से रात्रि शब्द का लोप होता है। षटिका:' शब्द में बहुवचन गौण है।
उदा०-षष्टिरात्र साठ रात में जो पकते हैं वे-षष्टिक धान्यविशेष (सांठी चावल)। यह साठी चावल नामक धान्य की ही संज्ञा है अन्य साठ रात्रि में पकनेवाले मुद्ग (मूंग) आदि की नहीं।
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