Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

Previous | Next

Page 507
________________ .४६० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (उपमानात्) उपमानवाची शब्द से (च) भी परे (गन्ध) गन्ध प्रातिपदिक को (समासान्तः) समास का अवयव (इत्) इकार आदेश होता है। उदा०-पद्म कमल के समान गन्ध गुण है जिसका वह-पद्मगन्धि। उत्पलनीलकमल के समान गन्ध गुण है जिसका वह-उत्पलगन्धि । करीष-शुष्क गोमय के समान गन्ध गुण है जिसका वह-करीषगन्धि। सिद्धि-पद्मगन्धिः । यहां उपमानवाची और गन्ध शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। ‘पद्मगन्ध' के गन्ध शब्दों को इस सूत्र से समासान्त इकार आदेश है। ऐसे ही-उत्पलगन्धिः, करीषगन्धिः । लोपादेशः (२६) पादस्य लोपोऽहस्त्यादिभ्यः।१३८ । प०वि०-पादस्य ६१ लोप: ११ अहस्त्यादिभ्य: ५।३ । स०-हस्ती आदिर्येषां ते हस्त्यादयः, न हस्त्यादय:-अहस्त्यादयः, तेभ्य:-अहस्त्यादिभ्य: (बहुवीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)। अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ, उपमानाद् इति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहावहस्त्यादिकाद् उपमानात् पादस्य समानान्तो लोप: । अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे हस्त्यादिवर्जिताद् उपमानवाचिन: शब्दात् परस्य पाद-शब्दस्य प्रातिपदिकस्य समासान्तो लोपादेशो भवति। उदा०-व्याघ्रस्येव पादौ यस्य स:-व्याघ्रपात्, सिंहपात् । हस्तिन् । कटोल । गण्डोल । गण्डोलक। महिला। दासी । गणिका। कुसूल। इति हस्त्यादयः ।। आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (अहस्त्यादिभ्य:) हस्ती आदि शब्दों से भिन्न (उपमानात्) उपमानवाची शब्द से परे (पादस्य) पाद प्रातिपदिक को (समासान्तः) समास का अवयव (लोप:) लोप आदेश होता है। उदा०-व्याघ्र बाघ के समान हैं पाद-पांव जिसके वह-व्याघ्रपात् । सिंह-शेर के समान हैं पाद जिसके वह-सिंहपात्। सिद्धि-व्याघ्रपात् । यहां उपमानवाची व्याघ्र और पाद शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। 'व्याघ्रपाद' के पाद शब्द के अन्त्य अकार को इस सूत्र से लोपादेश होता है। ऐसे ही-सिंहपात्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536