Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 505
________________ ४८८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां युवति और जाया शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। युवति जाया' शब्द को इस सूत्र से समासान्त निङ् आदेश होता है। लोपो व्योर्वलि' (६।१।६५) से जाय' के यकार का लोप और स्त्रिया: पुंवत्' (६।३।३४) से युवति शब्द को पुंवद्भाव (युवन्) होता है। ऐसे ही-वृद्धजानिः । इकारादेशः (२३) गन्धस्येदुत्पूतिसुसुरभिभ्यः ।१३५ । प०वि०-गन्धस्य ६।१ इत् ११ उत्-पूति-सु-सुरभिभ्य: ५।३ । स-उच्च पूतिश्च सुश्च सुरभिश्च ते-उत्पूतिसुसुरभयः, तेभ्य:उत्पूतिसुसुरभिभ्य: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ इति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहौ उत्पूतिसुसुरभिभ्यो गन्धस्य समासान्त इत् । अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे उत्पूतिसुसुरभिभ्य: परस्य गन्धशब्दस्य प्रातिपदिकस्य समासान्त इकारादेशो भवति । उदा०-(उत्) उद्गतो गन्धो यस्य स:-उद्गन्धि: । (पूति:) पूतिर्गन्धो यस्य स:-पूतिगन्धिः। (सुः) सुष्ठु गन्धो यस्य स:-सुगन्धिः। (सुरभि:) सुरभिर्गन्धो यस्य स:-सुरभिगन्धिः । आर्यभाषा: अर्थ- (बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (उत्पूतिसुसुरभिभ्यः) उत्, पूति, सु, सुरभि शब्दों से परे (गन्धस्य) गन्ध शब्द को (समासान्तः) समास का अवयव (इत्) इकार आदेश होता है। उदा०-(उत्) उद्गत उड़ गया है गन्ध गुण जिसका वह-उद्गन्धि। (पूति) पूति=निन्दित है गन्ध गुण जिसका वह-पूतिगन्धि। (सु) सु-पूजित है गन्ध गुण जिसका वह सुगन्धि। (सुरभि) सुरभि=प्रिय है गन्ध गुण जिसका वह-सुरभिगन्धि । _ सिद्धि-उद्गन्धिः । उत्+सु+गन्ध+सु। उत्+गन्ध । उद्गन्ध् इ। उद्गन्धि+सु । उद्गन्धिः। यहां 'उद्गन्ध' के गन्ध शब्द को इस सूत्र से समासान्त इकार आदेश है। ऐसे ही-पूतिगन्धिः, सुगन्धि:, सुरभिगन्धिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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