Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-बहुदण्डिका । बहु+जस्+दण्डिन्+जस् । बहु+दण्डिन्+कप् । बहुदण्डि+क। बहुदण्डिक+टाप् । बहुदण्डिका+सु । बहुदण्डिका।
यहां बहु और दण्डिन् शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। इन्नन्त बहुदण्डिन्' शब्द से इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग विषय में समासान्त कप्' प्रत्यय है। स्वादिष्वसर्वनामस्थाने (४।१।१७) से बहुदण्डिन् की पद संज्ञा होकर नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२७) से नकार का लोप होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टा (४।१।४) से टाप्' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-बहुच्छत्रिका, बहुस्वामिका, बहुवागिमका। कप्
(४१) नघृतश्च ।१५३। प०वि०-नदी-ऋत: ५।१ च अव्ययपदम्।
स०-नदी च ऋच्च एतयो: समाहारो नवृत्, तस्मात्-नवृत: (समाहारद्वन्द्व:)।
अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ, कप् इति चानुवति। अन्वय:-बहुव्रीहौ नवृतश्च समासान्त: कप्।
अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे नद्यन्ताद् ऋकारान्ताच्च प्रातिपदिकात् समासान्त: कप् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-(नदीसंज्ञकम्) बहवः कुमार्यो यस्मिन् स:-बहुकुमारीको देश:। बहुबमबन्धूको देश:। (ऋकारान्तम्) बहवः कर्तारो यस्मिन् स:-बहुकर्तृको देश:।
आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (नवृतः) नदीसंज्ञक और ऋकारान्त प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (कप्) कप् प्रत्यय होता है।
उदा०-(नदीसंज्ञक) बहु=बहुत हैं कुमारियां जिसमें वह-बहुकुमारीक देश । बहु बहुत हैं कर्ता (कर्तृ) स्वतन्त्र जिसमें वह-बहुकर्तृक देश।
सिद्धि-बहुकुमारीक: । बहु+जस्+कुमारी+जस् । बहुकुमारी+कम् । बहुकुमारीक+सु। बहुकुमारीक: ।
___ यहां बहु और कुमारी शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। कुमारी शब्द की यूस्त्र्याख्यौ नदी' (१।४।३) से नदी संज्ञा है। बहुकुमारी' शब्द से इस सूत्र से समासान्त कप प्रत्यय है। 'कप्' प्रत्यय परे होने पर केण:' (७।४।१३) से प्राप्त हस्वत्व का न कपि' (७।४।१४) से प्रतिषेध होता है। ऐसे ही-ब्रह्मबन्धूकः, बहुकर्तृकः ।
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