Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 525
________________ ५०५ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-निर्-निकल गई है प्रवाणी-तन्तुवाय की नाळ जिसकी वह-निष्प्रवाणि पट (वस्त्र)। निष्प्रवाणि कम्बल। जिसकी बुनाई समाप्त हो चुकी है वह नया-ताजा कपड़ा आदि निष्प्रवाणि' कहाता है। सिद्धि-निष्पवाणिः । निस्+सु+प्रवाणी+सु। निस्+प्रवाणी। निष्प्रवाणि+सु। निष्प्रवाणिः। यहां निस् और प्रवाणी शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। निष्प्रवाणी' शब्द से इस सूत्र से समासान्त कप्' प्रत्यय का प्रतिषेध है। 'नवृतश्च' (५।४।१५३) से कप्' प्रत्यय प्राप्त था। 'गोस्त्रियोरुपसर्जनस्य' (१।२।४८) से 'प्रवाणी' शब्द को हस्व होता है। इति समासान्तप्रत्ययादेशप्रकरणम्। प्रत्ययाधिकारो ड्याप्प्रातिपदिकाधिकारस्तद्धितार्थधिकारश्च समाप्तः। इति श्रीयुतपरिव्राजकाचार्याणाम् ओमानन्दसरस्वतीस्वामिनां महाविदुषां पण्डितविश्वप्रियशास्त्रिणां च शिष्येण पण्डितसुदर्शनदेवाचार्येण विरचिते पाणिनीयाष्टाध्यायीप्रवचने पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः। समाप्ताचायं पञ्चमोऽध्यायः।। ।। इति चतुर्थो भागः।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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