Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 508
________________ लोपादेश: पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः (२७) कुम्भपदीषु च । १३६ । प०वि० - कुम्भपदीषु ७ । ३ च अव्ययपदम् । अनु०-समासान्ताः बहुव्रीहौ, पादस्य, लोप इति चानुवर्तते । अन्वयः - बहुव्रीहौ कुम्भपदीषु च पादस्य समासान्तो लोपः । अर्थ:- बहुव्रीहौ समासे कुम्भपदीप्रभृतिषु च वर्तमानस्य पादशब्दस्य प्रातिपदिकस्य समासान्तो लोपादेशो भवति । उदा०-कुम्भस्येव पादौ यस्याः सा - कुम्भपदी । शतं पादा यस्या: सा-शतपदी, इत्यादिकम् । ४६१ कुम्भपदी । शतपदी अष्टापदी । जालपदी । एकपदी । मालापदी । मुनिपदी । गोधापदी । गोपदी । कलशीपदी । घृतपदी । दासीपदी । निष्पदी | आर्द्रपदी। कुणपदी। कृष्णपदी । द्रोणपदी । द्रुपदी । शकृत्पदी । सूपपदी । पञ्चपदी । अर्वपदी । स्तनपदी । इति कुम्भपद्यादयः । । आर्यभाषाः अर्थ- (बहुव्रीहौ ) बहुव्रीहि समास में (कुम्भपदीषु) कुम्भपदी आदि शब्दों में (च) भी विद्यमान ( पादस्य ) पाद प्रातिपदिक को (समासान्तः) समास का अवयव (लोपः) लोप आदेश होता है। उदा०-कुम्भ=कलश के समान हैं पाद= पांव जिसके वह - कुम्भपदी । शत=सौ हैं पाद जिसके वह - शतपदी, इत्यादि । सिद्धि - कुम्भपदी । कुम्भ + सु+पाद+सु । कुम्भ+पाद । कुम्भ+पाद् + ङीप् । कुम्भ+पत्+ई। कुम्भपदी+सु । कुम्भपदी । यहां कुम्भ और पाद शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। कुम्भपाद के पाद शब्द को इस सूत्र से समासान्त लोपादेश है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'पादोऽन्यतरस्याम्' (४/१/८) से ङीप् प्रत्यय और पाद: पत्' ( ६ । ४ । १३०) से पाद को पत् आदेश होता है। कुम्भपदी आदि शब्दों का समुदाय रूप में पाठ का प्रयोजन यह है कि स्त्रीलिङ्ग में और ङीप् प्रत्यय विषय में ही 'कुम्भपदी' आदि शब्दों में पाद के अन्त्य अकार का लोप होता है; अन्यत्र नहीं । लोपादेश: (२८) संख्यासुपूर्वस्य । १४० । प०वि०-संख्या-सुपूर्वस्य ६ । १ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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