Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 509
________________ ४१२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स०-संख्या च सुश्च तौ संख्यासू, संख्यासू पूर्वी यस्य स संख्यासुपूर्वः, तस्य-संख्यासुपूर्वस्य (बहुव्रीहि:)। अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ, पादस्य, लोप इति चानुवर्तते। अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे संख्यापूर्वस्य सुपूर्वस्य च पाद-शब्दान्तस्य प्रातिपदिकस्य समासान्तो लोपादेशो भवति । उदा०-(संख्या) द्वौ पादौ यस्य स:-द्विपात् । त्रिपात् । (सुः) शोभनौ पादौ यस्य स:-सुपात्। आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (संख्यासुपूर्वस्य) संख्यावाची और सु शब्द जिसके पूर्व में हैं उस (पादस्य) पाद-अन्तवाले प्रातिपदिक को (समासान्त:) समास का अवयव (लोप:) लोप आदेश होता है। उदा०-(संख्या) दो हैं पाद=पांव जिसके वह-द्विपात्। तीन हैं पाद जिसके वह-त्रिपात् । (सु) सु-सुन्दर हैं पाद जिसके वह-सुपात्। सिद्धि-द्विपात् । यहां द्वि और पाद शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। 'द्विपाद' के पाद शब्द को इस सूत्र से समासान्त लोपादेश है और वह अलोऽन्त्यस्य' (१1१।५२) से पाद शब्द के अन्त्य अकार को होता है। ऐसे ही-त्रिपात्, सुपात् । दतृ-आदेश: (२६) वयसि दन्तस्य दतृ।१४१। प०वि०-वयसि ७।१ दन्तस्य ६।१ दतृ १।१ (सु-लुक्) । अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ, संख्यासुपूर्वस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहौ संख्यासुपूर्वस्य दन्तस्य समासान्तो दत, वयसि । अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे संख्यापूर्वस्य सुपूर्वस्य च दन्त-शब्दान्तस्य प्रातिपदिकस्य समासान्तो दतृ-आदेशो भवति, वयसि गम्यमाने। उदा०-(संख्या) द्वौ दन्तौ यस्य स:-द्विदन्। त्रिदन्। चतुर्दन्। (सुः) शोभना दन्ता यस्य समस्ता जाता: स:-सुदन् कुमारः। आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (संख्यासुपूर्वस्य) संख्यावाची और सु शब्द जिसके पूर्व में हैं उस (दन्तस्य) दन्त-अन्तवाले प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (दतृ) दतृ आदेश होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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