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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (उपमानात्) उपमानवाची शब्द से (च) भी परे (गन्ध) गन्ध प्रातिपदिक को (समासान्तः) समास का अवयव (इत्) इकार आदेश होता है।
उदा०-पद्म कमल के समान गन्ध गुण है जिसका वह-पद्मगन्धि। उत्पलनीलकमल के समान गन्ध गुण है जिसका वह-उत्पलगन्धि । करीष-शुष्क गोमय के समान गन्ध गुण है जिसका वह-करीषगन्धि।
सिद्धि-पद्मगन्धिः । यहां उपमानवाची और गन्ध शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। ‘पद्मगन्ध' के गन्ध शब्दों को इस सूत्र से समासान्त इकार आदेश है। ऐसे ही-उत्पलगन्धिः, करीषगन्धिः । लोपादेशः
(२६) पादस्य लोपोऽहस्त्यादिभ्यः।१३८ । प०वि०-पादस्य ६१ लोप: ११ अहस्त्यादिभ्य: ५।३ ।
स०-हस्ती आदिर्येषां ते हस्त्यादयः, न हस्त्यादय:-अहस्त्यादयः, तेभ्य:-अहस्त्यादिभ्य: (बहुवीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ, उपमानाद् इति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहावहस्त्यादिकाद् उपमानात् पादस्य समानान्तो लोप: ।
अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे हस्त्यादिवर्जिताद् उपमानवाचिन: शब्दात् परस्य पाद-शब्दस्य प्रातिपदिकस्य समासान्तो लोपादेशो भवति।
उदा०-व्याघ्रस्येव पादौ यस्य स:-व्याघ्रपात्, सिंहपात् ।
हस्तिन् । कटोल । गण्डोल । गण्डोलक। महिला। दासी । गणिका। कुसूल। इति हस्त्यादयः ।।
आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (अहस्त्यादिभ्य:) हस्ती आदि शब्दों से भिन्न (उपमानात्) उपमानवाची शब्द से परे (पादस्य) पाद प्रातिपदिक को (समासान्तः) समास का अवयव (लोप:) लोप आदेश होता है।
उदा०-व्याघ्र बाघ के समान हैं पाद-पांव जिसके वह-व्याघ्रपात् । सिंह-शेर के समान हैं पाद जिसके वह-सिंहपात्।
सिद्धि-व्याघ्रपात् । यहां उपमानवाची व्याघ्र और पाद शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। 'व्याघ्रपाद' के पाद शब्द के अन्त्य अकार को इस सूत्र से लोपादेश होता है। ऐसे ही-सिंहपात्।
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