Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-यावत्-जितने को पूरा करनेवाला-यावतिथ (जितनेवां)। तावत् उतने को पूरा करनेवाला-तावतिथ (उतनेवां)। एतावत्-इतने को पूरा करनेवाला-एतावतिथ (इतनेवां)।
सिद्धि-यावत्+आम्+डट् । यावत्+इथुक्+अ। यावत्+इथ्+अ। यावतिथ+सु । यावतिथः।
यहां प्रथमा यत्' शब्द से यत्तदेतेभ्य: परिमाणे वतु' (५।२।३९) से वतुप्' प्रत्यय करने पर यावत्' शब्द सिद्ध होता है। तत्पश्चात् उस षष्ठी-समर्थ, संख्यावाची, वतु-प्रत्ययान्त यावत्' शब्द से पूरण अर्थ में इस सूत्र से 'डट्' प्रत्यय परे होने पर 'अथक' आगम होता है। यावत्' शब्द की 'बहुगणवतुडति संख्या' (१।१।२३) से संख्या संज्ञा है। ऐसे ही-तावतिथ., एतावतिथः। तीयः
(७) द्वेस्तीयः ।५४। प०वि०-द्वे: ५।१ तीय: १।१। अनु०-संख्याया:, तस्य, पूरणे इति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य संख्याया द्वे: पूरणे तीयः ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थात् संख्यावाचिनो द्विशब्दात् प्रातिपदिकात् पूरणेऽर्थे तीय: प्रत्ययो भवति।
उदा०-द्वयोः पूरण:-द्वितीयः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(अस्य) षष्ठी-समर्थ (संख्यायाः) संख्यावाची द्वि:) द्वि प्रातिपदिक से (पूरणे) पूरा करनेवाला अर्थ में (तीयः) तीय प्रत्यय होता है।
उदा०-द्वि-दो को पूरा करनेवाला-द्वितीय (दूसरा)। सिद्धि-द्वितीय: । द्वि+ओस्+तीय। द्वि+तीय। द्वितीय+सु। द्वितीयः ।
यहां षष्ठी-समर्थ, संख्यावाची द्वि' शब्द से पूरण-अर्थ में इस सूत्र से 'तीय' प्रत्यय है। यह तस्य पूरणे डट्' (५।२।४८) का अपवाद है। तीयः (सम्प्रसारणम्)
(८) त्रेः सम्प्रसारणं चा५५ । प०वि०-त्रे: ५।१ सम्प्रसारणम् ११ च अव्ययपदम्। अनु०-संख्याया:, तस्य, पूरणे, तीय इति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य संख्यायास्त्रे: पूरणे तीय: सम्प्रसारणं च ।
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