Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् टच्
(५) झयः ।१११ वि०-झय: ५।१। अनु०-समासान्ताः, टच्, अव्ययीभावे, अन्यतरस्याम् इति चानुवर्तते। अन्वयः-अव्ययीभावे झयोऽन्यतरस्यां समासान्तष्टच् ।
अर्थ:-अव्ययीभाव समासे वर्तमानाद् झयन्तात् प्रातिपदिकाद् विकल्पेन समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-समिध: समीपम्-उपसमिधम्, उपसमित् । दृषद: समीपम्उपदृषदम्, उपदृषत्।
आर्यभाषा: अर्थ-(अव्ययीभावे) अव्ययीभाव समास में विद्यमान (झय:) झय् वर्ण जिसके अन्त में है उस प्रातिपदिक से (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (समासान्त:) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है।
उदा०-समित्-समिधा के समीप-उपसमिध, उपसमित् । दृषद्-पत्थर के समीप-उपदृषद, उपदृषत्।
सिद्धि-(१) उपसमिधम् । उप+सु+समिध्+डस् । उप+समिध्। उपसमिध्+टच् । उपसमिध्+अ। उपसमिध+सु। उपसमिधम्।
यहां उप और समिध् शब्दों का. 'अव्ययं विभक्ति०' (२।१।६) से समीप-अर्थ में अव्ययीभाव समास है। झय्-वर्णान्त उपसमिध्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त टच्' प्रत्यय है। ऐसे ही-उपदृषदम् ।
(२) उपसमित् । यहां उप और समिध् शब्दों का पूर्ववत् अव्ययीभाव समास तथा विकल्प पक्ष में टच्' प्रत्यय नहीं है। 'झलां जशोऽन्ते' (८।२।३९) से उपसमिध् के धकार को दकार और 'वाऽवसाने (८।४।५६) से दकार का चर तकार होता है। ऐसे ही-उपदृषत् । टच्
(६) गिरेश्च सेनकस्य।११२। प०वि०-गिरे: ५।१ अव्ययपदम्, सेनकस्य ६।१। अनु०-समासान्ता:, टच, अव्ययीभावे इति चानुवर्तते। अन्वयः-अव्ययीभावे गिरेश्च समासान्तष्टच्, सेनकस्य ।
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