Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 491
________________ ४७४ अच् (६) अञ्नासिकायाः संज्ञायां नसं चास्थूलात् ।११८ | प०वि० - अच् १ । १ नासिकायाः ५ ।१ संज्ञायाम् ७ । १ नसम् १।१ च अव्ययपदम्, अस्थूलात् ५ ।१ । स०-न स्थूलम्-अस्थूलम् तस्मात् - अस्थूलात् (नञ्तत्पुरुषः ) । अनु० - समासान्ता:, बहुव्रीहौ इति चानुवर्तते । अन्वयः - बहुव्रीहावस्थूलाद् नासिकायाः समासान्तो ऽच्, नसं च, संज्ञायाम् । पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे स्थूलशब्दवर्जितात् परस्माद् नासिका-शब्दान्तात् प्रातिपदिकात् समासान्तोऽच् प्रत्ययो भवति, नासिकाया: स्थाने च नसमादेशो भवति, संज्ञायां गम्यमानायाम् । उदा०-द्रुरिव नासिका यस्य स: - द्रुणसः । वाध्रीणसः । गोनसः । से अन्य I आर्यभाषाः अर्थ- ( बहुव्रीहौ ) बहुव्रीहि समास में (अस्थूलात्) स्थूल शब्द से परे (नासिकायाः) नासिका शब्द जिसके अन्त में है उस प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (अच्) अच् प्रत्यय होता है (च) और नासिका के स्थान में (नसम्) नस आदेश होता है (संज्ञायाम्) यदि वहां संज्ञा अर्थ की प्रतीति हो । उदा० - दु-वृक्ष की शाखा के समान लम्बी नासिका - नाक है जिसकी वह दुणस । वाधी - चमड़े के तस के समान है नासिका जिसकी वह - वाध्रीणस (गैंडा ) । गौ-बैल के समान है नासिका जिसकी वह - गोनस ( सर्पविशेष ) । सिद्धि - द्रुणसः । द्रु+सु+नासिका+सु। द्रु+नासिका+अच् । द्रु+नस्+अ। द्रुणस+सु । द्रुणसः । यहां द्रु और नासिका शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से द्रुनासिका' शब्द से संज्ञाविषय में समासान्त 'अच्' प्रत्यय और नासिका के स्थान में 'नस' आदेश है। 'पूर्वपदात् संज्ञायामगः' (८ । ४ 1३) से णत्व और 'यस्येति च' (६ । ४ । १४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-वाधीणस, गोनसः । अच् (७) उपसर्गाच्च । ११६ | प०वि०-उपसर्गात् ५ ।१ च अव्ययपदम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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