Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(द्वि:) द्वाभ्यां विधाभ्यां भुङ्क्ते-द्विधा भुङ्क्ते (धा)। द्वेधा भुङ्क्ते (एधाच्) । एकं राशिं द्वौ राशी करोति-द्विधा करोति (धा)। द्वेधा करोति (एधाच्)। (त्रि:) तिसृभिर्विधाभिर्भुङ्क्ते-त्रिधा भुङ्क्ते (धा)। त्रेधा भुङ्क्ते (एधाच्) । एकं राशिं त्रीन् राशीन् करोति-त्रिधा करोति (धा)। त्रेधा करोति (एधाच्) ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संख्यायाः) संख्यावाची (द्वित्र्योः) द्वि, त्रि प्रातिपदिकों से (विधार्थे) विधा-अर्थ में (च) और (अधिकरणविचाले) द्रव्य को संख्यान्तर बनाने अर्थ में विहित (ध:) धा-प्रत्यय के स्थान में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (एधाच्) एधाच् आदेश (च) भी होता है।
उदा०-(द्वि) दो प्रकार से खाता-पीता है-द्विधा खाता-पीता है (धा)। द्वेधा खाता-पीता है (एधाच्)। एक राशि को दो राशि बनाता है-द्विधा बनाता है (धा)। द्वधा बनाता है (एधाच्) । (त्रि) तीन प्रकार से खाता-पीता है-त्रिधा खाता-पीता है (धा)। द्वधा खाता-पीता है (एधाच्)। एक राशि को तीन राशि बनाता है-त्रिधा बनाता है (धा)। त्रेधा बनाता है (एधाच्) । प्रयोग
द्वेधा वेधा भ्रमं चक्रे कान्तासु कनकेषु च।
तासु तेष्वनासक्त: साक्षाद् भर्गो नराकृतिः ।। सिद्धि-(१) द्विधा । पूर्ववत् । (२) द्वेधा । द्वि+औ+धा। द्वि+एधाच् । द एधा। द्वेधा+सु। द्वेधा+० । द्वेधा।
यहां विधा-अर्थ तथा अधिकरण-विचाल अर्थ में विद्यमान द्वि' शब्द से विहित 'ध' प्रत्यय के स्थान में विकल्प पक्ष में एधाच आदेश है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के इकार का लोप होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
याप्यविशिष्टार्थप्रत्ययविधि:
पाशप
(१) याप्ये पाशप्।४७। प०वि०-याप्ये ७१ पाशप् ११: अन्वयः-याप्ये प्रातिपदिकात् पाशप्।
अर्थ:-याप्ये=कुत्सितेऽर्थे वर्तमानात् प्रातिपदिकात् स्वार्थे पाशप् प्रत्ययो भवति ।
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