Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स०-कुश्च महाँश्च तौ कुमहान्तौ, ताभ्याम्-कुमहद्भ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-समासान्ता:, टच, तत्पुरुषस्य, ब्रह्मण इति चानुवर्तते।
अन्वय:-कुमहद्भ्यां ब्रह्मणस्तत्पुरुषाद् अन्यतरस्यां समासान्तष्टच्। . अर्थ:-कुमहद्भ्यां परस्माद् ब्रह्मन्-शब्दान्तात् तत्पुरुषसंज्ञकात् प्रातिपदिकाद् विकल्पेन समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-(कु:) कुत्सितो ब्रह्मा-कुब्रह्म:, कुब्रह्मा । (महान्) महाँश्चासौ ब्रह्मा-महाब्रह्म:, महाब्रह्मा।
आर्यभाषा: अर्थ-(कुमहद्भ्याम्) कु और महत् से परे (ब्रह्मण:) ब्रह्मन् शब्द जिसके अन्त में है उस (तत्पुरुषात्) तत्पुरुष-संज्ञक प्रातिपदिक से (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (समासान्त:) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है।
उदा०-(कु) कुत्सित=निन्दित ब्रह्मा-कुब्रह्म, कुब्रह्मा। (महत्) महान् ब्रह्मामहाब्रह्म, महाब्रह्मा।
सिद्धि-(१) कुब्रह्मः । कु+सु+ब्रह्मन्+सु । कु+ब्रह्मन् । कुब्रह्मन्+टच् । कुब्रह्म+अ। कुब्रह्म+सु । कुब्रह्मः ।
यहां कु और ब्रह्मन् शब्दों का कुगतिप्रादय:' (२।२।१८) से तत्पुरुष समास है। कुब्रह्मन्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त टच्’ प्रत्यय है। नस्तद्धिते' (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (अन्) का लोप होता है।
(२) कुब्रह्मा । यहां कु और ब्रह्मन् शब्दों का पूर्ववत् तत्पुरुष समास है। विकल्प पक्ष में टच्' प्रत्यय नहीं है। सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौ' (६।४।८) से नकारान्त अंग की उपधा को दीर्घ और 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात०' (६।१।६७) से 'सु' का लोप और नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२७) से नकार का लोप होता है।
(३) महाब्रह्मः । यहां महत् और ब्रह्मन् शब्दों का 'सन्महत्परम०' (२।१।६१) . से कर्मधारयतत्पुरुष समास है। 'आन्महत: समानाधिकरणजातीययोः' (६।३।४६) से महत् के तकार को आकार आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) महाब्रह्मा। यहां 'महाब्रह्मन्' शब्द से विकल्प पक्ष में समासान्त टच' प्रत्यय नहीं है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
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