Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
४५६ (३) अर्धखारम् । यहां अर्ध और खारी शब्दों का 'अर्धं नपुंसकम् (२।२।२) से एकदेशी तत्पुरुष समास है। 'अर्धखारी' शब्द से प्राग्देशीय आचार्यों के मत में समासान्त टच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) अर्धखारी। यहां अर्ध और खारी शब्दों का पूर्ववत् एकदेशी तत्पुरुष समास है। पाणिनिमुनि के मत में समासान्त 'अच्' प्रत्यय नहीं है। टच्
(१७) द्वित्रिभ्यामञ्जलेः ।१०२। प०वि०-द्वित्रिभ्याम् ५।२ अञ्जले: ५।१। स०-द्विश्च त्रिश्च तौ-द्वित्री, ताभ्याम्-द्वित्रिभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-समासान्ता:, टच, तत्पुरुषस्य, द्विगोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-द्वित्रिभ्यामञ्जलेर्द्विगोस्तत्पुरुषात् समासान्तष्टच् ।।
अर्थ:-द्वित्रिभ्यां परस्माद् अञ्जलिशब्दान्ताद् द्विगु-तत्पुरुषसंज्ञकात् प्रातिपदिकात् समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-(द्वि:) द्वयोरञ्जल्यो: समाहार:-व्यञ्जलम्। (त्रिः) त्रयाणामञ्जलीनां समाहार:-व्यञ्जलम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(द्वित्रिभ्याम्) द्वि और त्रि शब्दों से परे (अञ्जले:) अञ्जलि शब्द जिसके अन्त में है उस (द्विगो:) द्विगु (तत्पुरुषात्) तत्पुरुष-संज्ञक प्रातिपदिक से (समासान्त:) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है।
उदा०-(द्वि) दो अजलियों का समाहार-द्वयञ्जल। (त्रि) तीन अञ्जलियों का समाहार-त्र्यञ्जल। अञ्जलि १६ कर्ष (तोला)।
सिद्धि-व्यञ्जलम् । द्वि+ओस्+अञ्जलि+ओस्। द्वि+अञ्जलि। व्यञ्जलि+टच् । द्वयजल+अ। यजल+सु। द्वयञ्जलम्।
यहां द्वि और अञ्जलि शब्दों का तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।११५१) से द्विगुतत्पुरुष समास है। द्वयञ्जलि' शब्द से इस सूत्र से समासान्त टच्’ प्रत्यय होता है। यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के इकार का लोप होता है। ऐसे ही-त्र्यञ्जलम् । टच
(१८) अनसन्तान्नपुंसकाच्छन्दसि ।१०३१ प०वि०-अन्-असन्तात् ५।१ नपुंसकात् ५।१ छन्दसि ७१।
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