Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 472
________________ पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः ४५५ उदा० - आकर्षः श्वा इव - आकर्षश्वः । फलक: श्वा इव - फलकश्व: । आर्यभाषा: अर्थ- (अप्राणिषु) प्राणी अर्थ से भिन्न (उपमानात्) उपमानवाची (शुनः) श्वन् शब्द जिसके अन्त में है उस ( तत्पुरुषात्) तत्पुरुषसंज्ञक प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है । उदा० - आकर्ष= चौपड़ की बिसात जो श्वा= कुत्ते के आकार की है वह आकर्षश्व । फलक = शतरंज का फट्टा जो श्वा= कुत्ते के आकार का है वह फलकश्व । सिद्धि - आकर्षश्व: । यहां आकर्ष और अप्राणी तथा उपमानवाची श्वन् शब्दों का 'उपमितं व्याघ्रादिभि: सामान्याप्रयोगे (२1१ 1५६ ) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है । शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - फलकश्व: । टच् (१३) उत्तरमृगपूर्वाच्च सक्थनः । ६८ । प०वि० - उत्तर- मृग- पूर्वात् ५ ।१ च अव्ययपदम् सक्थ्न: ५ । १ । सo - उत्तरं च मृगश्च पूर्वं च एतेषां समाहारः - उत्तरमृगपूर्वम्, तस्मात् - उत्तरमृगपूर्वात् (समाहारद्वन्द्व : ) । अनु०-समासान्ता:, तत्पुरुषस्य, टच्, उपमानाद् इति चानुवर्तते । अन्वयः-उत्तरमृगपूर्वाद् उपमानाच्च सक्थ्नस्तत्पुरुषात् समासान्त ष्टच् । अर्थ :- उत्तर- मृग- पूर्वाद् उपमानवाचिनश्च परस्मात् सक्थि-अन्तात् तत्पुरुषसंज्ञकात् प्रातिपदिकात् समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति । उदा०- ( उत्तरम्) उत्तरं सक्थ्न: - उत्तरसक्थम् । (मृगः ) मृगस्य सक्थि- मृगसक्थम् । (पूर्वम् ) पूर्वं सक्छन: - पूर्वसक्थम् । ( उपमानात् ) फलकमिव सक्थि - फलकसक्थम् । आर्यभाषाः अर्थ- (उत्तरमृगपूर्वात् ) उत्तर, मृग, पूर्व (च) और (उपमानात्) उपमानवाची शब्द से परे (सक्थ्नः) सक्थि शब्द जिसके अन्त में है उस ( तत्पुरुषात्) तत्पुरुष-संज्ञक प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है। उदा०- - (उत्तर) सक्थि = जंघा का उत्तरभाग- उत्तरसक्थ । ( मृग ) मृग की सक्थि- मृगसक्थ । (पूर्व) सक्थि का पूर्वभाग - पूर्वसक्थ । ( उपमान) फलक = फट्टे की आकृति की सक्थि- फलकसक्थ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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