Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 461
________________ ४४४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-समासान्ताः, अच् इति चानुवर्तते । अन्वय:-संख्याव्ययादेरङ्गुलेस्तत्पुरुषात् प्रातिपदिकात् समासान्तोऽच् । अर्थ:-संख्यादेरव्ययादेश्चाङ्गुल्यन्तात् तत्पुरुषसंज्ञकात् प्रातिपदिकात् समासान्तोऽच् प्रत्ययो भवति। उदा०-(संख्यादि:) द्वे अङ्गुली प्रमाणमस्य-व्यङ्गुलम्। त्यगुलम्। (अव्ययादि:) निर्गतमगुलिभ्य:-निरङ्गुलम् । अत्यङ्गुलम् । आर्यभाषा: अर्थ-(संख्याव्ययादे:) संख्या और अव्यय जिसके आदि में हैं तथा (अगुले:) अङ्गुलि शब्द जिसके अन्त में है उस (तत्पुरुषस्य) तत्पुरुष-संज्ञक प्रातिपदिक से (समासान्त:) समास का अवयव (अच्) अच् प्रत्यय होता है। ___ उदा०-(संख्यादि) दो अङ्गुलियां प्रमाण (माप) है इसका यह-द्वयङ्गुल। तीन अगुलियां प्रमाण है इसका यह-त्र्यङ्गुल। (अव्यय) अङ्गुलियों से निकला हुआ-निरगुल, अगुलि रहित । अङ्गुलियों को अतिक्रमण किया हुआ-अत्यगुल। सिद्धि-व्यङ्गुलम् । द्वि+औ+अड्लि+औ। द्वि+अङ्गुलि+मात्रच् । व्यङ्लि+० । व्यङ्लि+अच् । द्वयङ्ल्+अ। व्यङ्गुल+सु। व्यङ्गुलम् । यहां संख्यादि, अङ्गुलि-शब्दान्त, तत्पुरुष-संज्ञक द्वयङ्गुलि' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के इकार का लोप होता है। प्रमाण अर्थ में प्रमाणे व्यसज्दघ्नमात्रच:' (५।२।३७) से प्राप्त मात्रच् प्रत्यय का वा-'प्रमाणे लो द्विगोर्नित्यम्' (५।२।३७) से नित्य लोप होता है। यहां तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।१।५१) से तद्धितार्थ में द्विगु-तत्पुरुष समास है। ऐसे ही-त्र्यङ्गुलम् । (२) निरगुलम् । निर्+सु+अङ्गुलि+भ्यस् । निर्+अङ्गुलि। निरगुलि+अच् । निरगुल्+अ। निरगुल+सु । निरगुलम्। यहां अव्ययादि, अङ्गुलि-शब्दान्त तत्पुरुष-संज्ञक निरगुलि' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय है। यहां कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-अत्यङ्गुलम् । अच् (२) अहःसर्वैकदेशसंख्यातपुण्याच्च रात्रेः ८७। प०वि०-अह:-सर्व-एकदेश-संख्यात-पुण्यात् ५ १ च अव्ययपदम्, रात्रे: ५।१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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