Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 460
________________ ४४३ ४४३ पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः अच् (१८) उपसर्गादध्वनः।८५। प०वि०-उपसर्गात् ५।१ अध्वन: ५।१। अनु०-समासान्ता:, अच् इति चानुवर्तते । अन्वय:-उपसर्गाद् अध्वन: समासान्तोऽच् । अर्थ:-उपसर्गात् परस्माद् अध्वन्-शब्दान्तात् प्रातिपदिकात् समासान्तोऽच् प्रत्ययो भवति। उदा०-प्रगतोऽध्वानम्-प्राध्वो रथ: । प्राध्वं शकटम् । निष्क्रान्तमध्वन:निरध्वं शकटम्। अत्यध्वं शकटम् । आर्यभाषा: अर्थ-(उपसर्गात्) उपसर्ग से परे (अध्वनः) अध्वन् शब्द जिसके अन्त में है उस प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (अच्) अच् प्रत्यय होता है। उदा०-अध्वा मार्ग में चलनेवाला रथ-प्राध्व रथ। प्राध्व शकट (छकड़ा)। मार्ग से निकला हुआ शकट-निरध्व शकट । मार्ग को पार किया हुआ शकट-अत्यध्व शकट। सिद्धि-प्राध्वम् । प्र+सु+अध्वन्+अम्। प्र+अध्वन् । प्राध्वन्+अच् । प्राध्द+अ। प्राध्व+सु । प्राध्वम् । यहां प्रादि-समास में विद्यमान प्राध्यन्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय है। नस्तद्धिते' (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग का लोप होता है। यहां कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादि तत्पुरुष समास है। ऐसे ही-निरध्वम्, अत्यध्वम् । (क) तत्पुरुषसमासः अच् (१) तत्पुरुषस्याङ्गुलेः संख्याव्ययादेः ।८६। प०वि०-तत्पुरुषस्य ६१ अङ्गुले: ६।१ संख्या-अव्ययादे: ६१ (पञ्चम्यर्थे)। स०-संख्या च अव्ययं च एतयो: समाहार: संख्याव्ययम्, संख्याव्ययमादिर्यस्य स संख्याव्ययादिः, तस्य-संख्याव्ययादे: (समाहारद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि:)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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