Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पञ्चमाध्यायस्य तृतीय पादः उदा०-काकताल के समान-काकतालीय। काक कौवे के उड़ने और ताड-वृक्ष के पके हुये फल के गिरने के समान जहां दो बातें संयोगवश एक साथ होती हैं, उसे काकतालीय' कहते हैं।
अजाकृपाण के समान-अजाकृपाणीय । लटकती हुई तलवार के नीचे अजा का आना और तलवार के अकस्मात् गिरने से अजा के गले का कट जाने के समान जो कार्य होता है उसे 'अजाकृपाणीय' कहते हैं।
अन्धकवर्तिक के समान-अन्धकवर्तिकीय। अन्धे व्यक्ति के द्वारा हाथ का फैलाना और वर्तिका बटेर का उसके हाथ में आ जाने के समान जो कार्य है वह 'अन्धकवर्तिकीय' कहाता है।
सिद्धि-काकतालीयम्। काकताल+सु+छ। काकताल+इय। काकतालीय+सु। काकतालीयम्।
यहां प्रथम काकागमनं तालपतनमिव-काकतालम्, इस प्रकार काक और ताल शब्दों का सुप'सुपा' से इव-अर्थ में केवलसमास होता है। तत्पश्चात् इवार्थ-विषयक, समस्त काकताल' शब्द से इस सूत्र से 'छ' प्रत्यय होता है। 'आयनेय०' (७।१।२) से छ’ के स्थान में 'ईय्' आदेश और 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-अजाकृपाणीयम्, अन्धकवर्तिकीयम् । अण्
(१२) शर्करादिभ्योऽण् ।१०७। प०वि०-शर्करा-आदिभ्य: ५।३ अण् १।१। स०-शर्करा आदिर्येषां ते शर्करादयः, तेभ्य:-शर्करादिभ्यः (बहुव्रीहि:)। अनु०-इवे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-इवे शर्करादिभ्योऽण् ।
अर्थ:-इवार्थे वर्तमानेभ्य: शर्करादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्योऽण् प्रत्ययो भवति।
उदा०-शर्करा इव-शार्करम् । कपालिका इव-कापालिकम्, इत्यादिकम्।
शर्करा। कपालिका। पिष्टिक। पुण्डरीक। शतपत्र। गोलोमन्। गोपुच्छ। नरालि । नकुला। सिकता। इति शर्करादयः ।।
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