Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
४२७ उदा०-सुष्ठु राजा-सुराजा। अतिशयितो राजा-अतिराजा। सुष्ठु गौ:-सुगौ: । अतिशयिता गौ:-अतिगौः।
आर्यभाषा: अर्थ-(पूजनात्) पूजनवाची शब्द से परे प्रातिपदिक से (समासान्ता:) प्राप्त समासान्त प्रत्यय (न) नहीं होते हैं।
उदा०-सुष्ठु राजा-सुराजा। अच्छा राजा। अतिशयित राजा-अतिराजा। बढ़िया राजा। सुष्ठु गौ-सुगौ। अच्छी गाय। अतिशयित गौ-अतिगौ । बढ़िया गाय।
सिद्धि-(१) सुराजा । सु+सु+राजन्+सु। सु+राजन् । सुराजन्+सु । सुराजान्+सु । सुराजान्+० । सुराजा० । सुराजा।।
यहां सु और राजन् सुबन्तों का कुगतिप्रादय:' (२।२।१८) से प्रादि तत्पुरुष समास है, तत्पश्चात् राजाह:सखिभ्यष्टच् (५।४।९१) से समासान्त 'टच' प्रत्यय प्राप्त होता है। इस सूत्र से उसका प्रतिषेध हो जाता है। पुन: सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौ (६।४।८) से नकारान्त अंग की उपधा को दीर्घ, हल्डयाब्भ्यो दीर्घात्' (६।१४६७) से 'सु' का लोप और नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२७) से नकार का लोप होता है। ऐसे ही-अतिराजा।
(२) सुगौः । सु+सु+गो+सु। सु+गो। सुगो+सु। सुगौ+स्। सुगौ+रु। सुगौ+र। सुगौः। ___यहां सु और गो सुबन्तों का पूर्ववत् प्रादितत्पुरुषसमास है, तत्पश्चात् गोरतद्धितलुकि' (५।४।९२) से समासान्त 'टच' प्राप्त होता है। इस सूत्र से उसका प्रतिषेध हो जाता है। पुन: गोतो णित्' (७।१।९०) से सु' प्रत्यय को णिद्वद्भाव होकर 'अचो णिति (७।२।११५) से अंग को वृद्धि होती है। पूर्ववत् 'सु' को रुत्व और रेफ को विसर्जनीय आदेश होता है। ऐसे ही-अतिगौः।। समासान्तप्रत्ययप्रतिषेधः
(३) किमः क्षेपे।७०। प०वि०-किम: ५।१ क्षेपे ७।१। अनु०-समासान्ताः, न इति चानुवर्तते। अन्वय:-क्षेपे किम: परस्मात् प्रातिपदिकात् समासान्ता न।
अर्थ:-क्षेपेऽर्थे वर्तमानात् किम: परस्मात् प्रातिपदिकात् समासान्ता: प्रत्यया न भवन्ति।
उदा०-कथंभूतो राजा-किंराजा यो न रक्षति प्रजाः। कथंभूत: सखा-किंसखा योऽभिद्रुह्यति। किंभूता गौ:-किंगौर्या न दोग्धि ।
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