Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
४२६
(२) अगौ: । यहां नञ् और गो शब्दों का पूर्ववत् नञ्तत्पुरुष समास है। तत्पश्चात् 'गोरतद्धितलुकिं (५।४ / ९२ ) से समासान्त 'टच्' प्रत्यय प्राप्त होता है। इस सूत्र से उसका प्रतिषेध हो जाता है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
समासान्तप्रत्ययविकल्पः
(५) पथो विभाषा । ७२ ।
प०वि० - पथ: ५ ।१ विभाषा १ । १ ।
अनु० - समासान्ता:, न, नञः, तत्पुरुषाद् इति चानुवर्तते । अन्वयः-तत्पुरुषाद् नञः पथो विभाषा समासान्तो न । अर्थः- तत्पुरुषसंज्ञकाद् नञः परस्मात् पथिन् - शब्दात् प्रातिपदिकाद् विकल्पेन समासान्तः प्रत्ययो भवति । पूर्वेण नित्यः प्रतिषेधः प्राप्तोऽनेन विकल्पो विधीयते ।
उदा०-न पन्था:-अपथम्। न पन्था:-अपन्थाः ।
आर्यभाषाः अर्थ- (तत्पुरुषात्) तत्पुरुष - संज्ञक (नञः ) नञ् से परे (पथ:) पथिन् प्रातिपदिक से (विभाषा) विकल्प से (समासान्तः) समासान्त प्रत्यय (न) नहीं होता है। पूर्व सूत्र से नित्य प्रतिषेध प्राप्त था, इससे विकल्प-विधान किया जाता है।
उदा० - पन्था नहीं- अपथ । पन्था नहीं- अपन्था । खराब मार्ग ।
सिद्धि-(१) अपथम् । नञ्+सु+पथिन्+सु । न+पथिन्। अपथिन्+अ। अपथ्+अ । अपथ+ सु । अपथम् ।
यहां नञ् और पथिन् सुबन्तों का 'नञ्' (२ 1२ 1६ ) से नञ् तत्पुरुषसमास होता है, तत्पश्चात् 'ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे' (५/४/७४) से समासान्त 'अ' प्रत्यय होता है। 'नस्तद्धिते' (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (इन्) का लोप और 'अपथं नपुंसकम् (२/४/३०) से नपुंसक लिङ्गता होती है।
(२) अपथा: । यहां पूर्वोक्त 'पथिन्' शब्द से इस सूत्र से विकल्प विधान से यहां पूर्ववत् समासान्त 'अ' प्रत्यय नहीं होता है । 'पथिमथ्यृभुक्षामात्' (७।१।८५) से 'पथिन्' के नकार को आकार आदेश, 'इतोऽत् सर्वनामस्थाने' (७।१।८६ ) से 'पथिन्' के इकार को अकार आदेश और 'थो न्थ:' (७।१।८७) से 'पथिन्' के थकार को 'न्थ' आदेश होता है।
विशेषः 'न वेति विभाषा' (१।१।४४) से निषेध और विकल्प की विभाषा संज्ञा की गई है। प्राप्त विभाषा में नकार से पूर्व प्राप्त विधि का प्रतिषेध होकर 'वा' से विकल्प किया जाता है। यहां 'न' पद की अनुवृत्ति का यही अभिप्राय है।
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