Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 345
________________ ३२८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-सुप इत्यनुवर्तते। 'तिङश्च' (५ ।३।५६) इति चानुवर्तनीयम्। अन्वय:-अव्ययसर्वनामभ्य:, प्रातिपदिकेभ्य: सुबन्तेभ्यस्तिङन्तेभ्यश्च प्राग् इवात् प्राक् टेरकच्। . अर्थ:-अव्ययेभ्य: सर्वनामभ्य: प्रातिपदिकेभ्य: सुबन्तेभ्यस्तिङन्तेभ्यश्च शब्देभ्य: प्रागिवीयेष्वर्थेषु प्राक् टेरकच् प्रत्ययो भवति, इत्यधिकारोऽयम् । ___ अस्मिन् सूत्रे प्रातिपदिकात्, सुप इति द्वयमप्यनुवर्तते । तेन-क्वचित् प्रातिपदिकस्य टे:' प्राक् प्रत्ययो भवति, क्वचिच्च सुबन्तस्य टे:' प्राक् प्रत्ययो विधीयते। तत्राभिधानतो व्यवस्था भवति । उदा०-(अव्ययम्) अल्पमुच्चै:-उच्चकैः । अल्पं नीचै:-नीचकैः । अल्पं शनै:-शनकैः । (सर्वनाम) अल्पे सर्वे-सर्वके। अल्पे विश्वे-विश्वके। अल्पे उभये-उभयके। (सुबन्तम्) अल्पेन त्वया-त्वयका। अल्पेन मया-मयका। अल्पे त्वयि-त्वयकि। अल्पे मयि-मयकि। (तिङन्तम्) अल्पं पचति-पचतकि। अल्पं पठति-पठतकि। ___ आर्यभाषा: अर्थ-(अव्ययसर्वनामभ्यः) अव्यय, सर्वनाम प्रातिपदिकों से (सुप:) सुबन्तों से तथा (तिड:) तिङन्तों से (च) भी (प्राग् इवात्) प्राग्-इवीय अर्थों में (ट:) टि-भाग से (प्राक्) पहले (अकच्) अकच् प्रत्यय होता है। इस सूत्र से 'प्रातिपदिकात्' और 'सुपः' इन दोनों की अनुवृत्ति है। अत: कहीं प्रातिपदिक के टि-भाग से पहले अकच् प्रत्यय होता है और कहीं सुबन्त के टि-भाग से पहले अकच् प्रत्यय किया जाता है। यह सब अभिधान (अर्थ-कथन) के सामर्थ्य से व्यवस्था होती है। उदा०-(अव्ययम्) अल्प उच्चैः (ऊंचा)-उच्चकैः । अल्प नीचैः (नीचा)-नीचकैः । अल्प शनैः (धीरे)-शनकैः । (सर्वनाम) अल्प सर्व (सब)-सर्वके। अल्प विश्व (समस्त)-विश्वके। अल्प उभय (दोनों)-उभयके। (सुबन्त) अल्प तुझ से-त्वयका। अल्प मुझ में-मयका। अल्प तुझ में-त्वयकि। अल्प मुझ में-मयकि। (तिङन्त) अल्प पकाता है-पचतकि । अल्प पढ़ता है-पठतकि। सिद्धि-(१) उच्चकैः । उच्चैस्+सु। उच्च्+अकच्+ऐस्+० । उच्चक+ऐस्+० । उच्चकैस् । उच्चकैः । यहां अल्प अर्थ में विद्यमान, अव्यय-संज्ञक उच्चैः' शब्द से इस सूत्र से उसके टि-भाग (एस्) से पूर्व 'अकच्' प्रत्यय है। ऐसे ही-नीचकैः । शनकैः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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