Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (उर्णाया:) ऊर्णा प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति और (अस्मिन्निति) सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में (युस्) युस् प्रत्यय होता है (अस्ति) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह 'अस्ति' हो।।
उदा०-ऊर्णा=ऊन इसकी है वा इसमें है यह-ऊर्णायु: (ऊनी)। सिद्धि-ऊर्णायुः । ऊर्णा+सु+युस् । ऊर्णा-यु। ऊर्णायु+सु । ऊर्णायुः ।
यहां प्रथमा-समर्थ ऊर्णा' शब्द से अस्य (षष्ठी) और (अस्मिन्निति) सप्तमीविभक्ति के अर्थ में युस्' प्रत्यय है। 'युस्' प्रत्यय के सित् होने से 'ऊर्णा" शब्द की सिति च' (१।४।१६) से पद-संज्ञा होने से यस्येति च (४।४।१४८) से अंग के आकार का लोप नहीं होता है।
ग्मिनिः
(३१) वाचो ग्मिनिः।१२४। प०वि०-वाच: ५।१ ग्मिनि: ११।। अनु०-तत्, अस्य, अस्ति, अस्मिन्, इति, इति चानुवर्तते । अन्वय:-तद् वाचोऽस्य, अस्मिन्निति च ग्मिनि:, अस्ति।
अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थाद् वाच्-शब्दात् प्रातिपदिकाद् अस्येति षष्ठ्यर्थे, अस्मिन्निति च सप्तम्यर्थे ग्मिनि: प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थमस्ति चेत् तद् भवति ।
उदा०-वागस्य, अस्मिन् वाऽस्ति-वाग्मी ।। वाग्मी। वाग्ग्मिनौ। वाग्मिन:।
आर्यभाषाअर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (वाच:) वाच् प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति और (अस्मिन्निति) सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में (ग्मिनि:) ग्मिनि प्रत्यय होता है (अस्ति) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह 'अस्ति' हो।
उदा०-वाक् इसकी है वा इसमें है यह-वाग्मी (वाणी का संयमी)।
सिद्धि-वाग्मी। यहां प्रथमा-समर्थ वाच्' शब्द से अस्य (षष्ठी) और अस्मिन् (सप्तमी) अर्थ में इस सूत्र से 'मिनि' प्रत्यय है। 'झलां जशोऽन्ते (८।२।३९) से वाच्’ के चकार को जश्त्व गकार होता है। शेष कार्य तपस्वी' (५।२।१०२) के समान है।
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