Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष: एक घोड़ा एक दिन में जितनी यात्रा करता था वह दूरी 'आश्वीन' कहलाती थी। अथर्ववेद में यह ३ योजन और ५ योजन के बाद आश्वीन दूरी का उल्लेख है- 'यद् धावसि त्रियोजनं पञ्चयोजनमाश्वीनम्' (अथर्व० ६ ११३१।३)।
___इस सम्बन्ध में भाष्यकार ने रोचक सूचना दी है-जो चार योजन दूरी तय करे वह 'अश्व' है। जो आठ योजन दूरी तय करे वह 'अश्वतर' है। “अश्वोऽयं यश्चत्वारि योजनानि गच्छति, अश्वतरोऽयं योऽष्टौ योजनानि गच्छति ५ ॥३.५” (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० १५७)। खञ् (निपातनम्)
(१) शालीनकौपीने अधृष्टाकार्ययोः ।२०। प०वि०-शालीन-कौपीने १।२ अधृष्ट-अकार्ययो: ७।२। ___सo-शालीनश्च कौपीनं च ते शालीनकौपीने (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । न धृष्ट इति अधृष्ट:, न कार्यमिति अकार्यम् । अधृष्टश्च अकार्यं च ते अधृष्टाकार्ये, तयोः-अधृष्टाकार्ययो: (नगर्भित इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु०-तत्, खञ् इति चानुवर्तते।। अन्वयः-तत् शालीनकौपीने खञ् अधृष्टाकार्ययोः ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थौ शालीन-कौपीनशब्दौ खञ्-प्रत्ययान्तौ निपात्येते, यथासंख्यम् अधृष्टाकार्ययोरभिधेययोः।
उदा०-शालाप्रवेशमर्हति-शालीनोऽधृष्ट: । कूपावतारमर्हति-कौपीनम् अकार्यम् (पापम्)।
_ आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-विभक्ति से समर्थ (शालीनकौपीने) शालीन, कौपीन शब्द (खञ्) खञ्-प्रत्ययान्त निपातित हैं (अधृष्टाकार्ययोः) यथासंख्य अधृष्ट-अचतुर तथा अकार्य-पाप अर्थ अभिधेय में।
उदा०-जो शाला (घर) में प्रविष्ट रह सकता है वह-शालीन अधृष्ट (भीर)। जो कूप में डालने योग्य है वह-कौपीन अकार्य (पाप)।
सिद्धि-(१) शालीन: । शालाप्रवेश+अम्+खञ् । शालाo+ईन। शाल्+ईन । शालीन+सु । कौपीनम्।
यहां द्वितीया-समर्थ 'शालाप्रवेश' शब्द से अर्हति-अर्थ में इस सूत्र से 'खञ्' प्रत्यय और प्रवेश' उत्तरपद का लोप निपातित है। आयनेय०' (७।१।२) से 'ख' के स्थान में 'ईन्' आदेश, पूर्ववत् अंग को पर्जन्यवत् आदिवृद्धि और अंग के आकार का लोप होता है।
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