Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) विद्याचणः । यहां पूर्वोक्त विद्या' शब्द से ‘चणप्' प्रत्यय है। पूर्ववत् चणम्' प्रत्यय के चकार की चुटू' (१।३।७) से इत्-संज्ञा नहीं होती है।
स्वार्थिकप्रत्ययप्रकरणम् ना+ना
(१) विनञ्भ्यां नानाञौ नसह।२७। प०वि०-वि-नभ्याम् ५।२ ना-नानौ १२ न-सह अव्ययपदम् ।
स०-विश्च नञ् च तो विनौ, ताभ्याम्-विनञ्भ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । नाश्च नाञ् च तौ नानाजौ (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। न सह इति नसह (अलुक्तत्पुरुष:)।
अन्वय:-न सह विनञ्भ्यां स्वार्थे नानाञौ ।
अर्थ:-नसह-असहार्थे वर्तमानाभ्यां विनञ्भ्यां प्रातिपदिकाभ्यां स्वार्थे यथासंख्यं नानाजौ प्रत्ययौ भवत: ।
उदा०-(वि) न सह इति-विना। (नञ्) न सह इति-नाना।
आर्यभाषा: अर्थ-(नसह) असह-पृथक्भाव अर्थ में विद्यमान (विनञ्भ्याम्) वि, नञ् प्रातिपदिक से स्वार्थ में (नानाऔ) ना और नाञ् प्रत्यय होते हैं।
उदा०-(वि) नसह-असह (पृथक्)-विना। (न) नसह-असह (पृथक्)-नाना। सिद्धि-(१) विना । वि+सु+ना। विना। विना+सु। बिना।
यहां नसह-अर्थ में विद्यमान वि' शब्द से स्वार्थ में इस सूत्र से ना' प्रत्यय है। विना' शब्द का स्वरादिगण में पाठ होने से स्वरादिनिपातमव्ययम् (१।११३७) से अव्ययसंज्ञा होकर 'अव्ययादापसुप:' (२।४।८२) से 'सु' का लुक् होता है।
(२) नाना । नञ्+सु+नाज । न+ना। ना+ना। नाना+सु । नाना।
यहां नसह-अर्थ में विद्यमान 'नञ्' शब्द से स्वार्थ में इस सूत्र से नाञ्' प्रत्यय है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११५) से अंग को आदिवद्धि होती है। पूर्ववत् अव्ययसंज्ञा और 'सु' का लुक होता है। 'नाम् ' प्रत्यय के नित् होने से जित्यादिर्नित्यम्' (६।१।९४) से आधुदात्त स्वर होता है-नाना । शालच्+शङ्कटच
(२) वेः शालच्छ ङ्कटचौ।२८। प०वि०-वे: ५।१ शालच्-शड्कट चौ १।२ ।
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