Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(परोवर) परवर्ती और अवरवर्ती जनों के सुख को अनुभव करनेवालापरोवरीण। यहां पर-अवर शब्द के स्थान में परोवर भाव निपातित है। (परम्पर) परवर्ती और परतरवर्ती जनों के सुख को अनुभव करनेवाला-परम्परीण । यहां पर-परतर शब्द के स्थान में परम्पर भाव निपातित है। (पुत्रपौत्र) पुत्र और पौत्रों के सुख को अनुभव करनेवाला-पुत्रपौत्रीण।
सिद्धि-परोवरीणः । परोपवर+शस्+ख । परोवर+ईन। परोवरीण+सु। परोवरीणः ।
यहां द्वितीया-समर्थ परोवर' शब्द से अनुभवति-अर्थ में इस सूत्र से 'ख' प्रत्यय है। पूर्ववत् ‘ख’ के स्थान में 'ईन्' आदेश, 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप तथा 'अट्कुप्वाङ्' (८।४।१) से णत्व होता है। यहां पर-अवर शब्द के स्थान में परोवर भाव भी निपातित है (पर+अवर पर+उवर-परोवर)। ऐसे ही-परम्परीण:, पुत्रपौत्रीणः।
गामि-अर्थप्रत्ययविधिः ख:
(१) अवारपारात्यन्तानुकामं गामी।११। प०वि०-अवारपार-अत्यन्त-अनुकामम् २१ गामी १।१।
स०-अवारपारश्च अत्यन्तं च अनुकामं च एतेषां समाहारोऽवारपारात्यन्तानुकामम्, तत्-अवारपारात्यन्तानुकामम् (समाहारद्वन्द्वः) ।
कृवृत्ति:-गमिष्यतीति गामी। 'भविष्यति गम्यादयः' (३।३।३) इति गामि-शब्दस्य भविष्यति काले साधुत्वम् । 'अकेनोर्भविष्यदाधर्मण्ययो:' (२।३।७०) इति षष्ठीप्रतिषेधात् 'कर्मणि द्वितीया' (२।३।२) इति सूत्रपाठे द्वितीया विभक्तिर्वर्तते।
अनु०-तत्, ख इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् अवारपारात्यन्तानुकामेभ्यो गामी खः ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थेभ्योऽवारपारात्यन्तानुकामेभ्य: प्रातिपदिकेभ्यो गामी इत्यस्मिन्नर्थे ख: प्रत्ययो भवति ।।
उदा०-(अवारपारम्) आवारपारं गामी-अवारपारीण: । विगृहीतादपीष्यते-अवारं गामी-अवारीण: । पारं गामी-पारीण: । विपरीताच्च-पारावारं
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