Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः भवतो वयस्यभिधेये। अत्र वयसोऽर्थबलेनाधीष्टादिष्वर्थेषु भूत इत्येवार्थोऽभिसम्बध्यते।
उदा०-मासं भूत:-मास्यो बाल: (यत्) । मासीनो बाल: (खञ्) ।
आर्यभाषा अर्थ-(तम्) द्वितीया-समर्थ (कालात्) कालविशेषवाची (मासात्) मास प्रातिपदिक से (अधीष्टो भृतो भूतो भावी) अधीष्ट, भृत, भूत, भावी इन चार अर्थों में (यत्खौ ) यत् और खञ् प्रत्यय होते हैं (वयसि) यदि वहां वय: आयु अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-जो एक मास का भूत हो चुका है वह-मास्य बालक (यत्) । मासीन बालक (खञ्)। यहां अधीष्ट आदि चार अर्थों की अनुवृत्ति में वय:-आय के अर्थबल से केवल भूत-अर्थ का ही सम्बन्ध है, अन्यों का नहीं।
सिद्धि-(१) मास्य: । मास+अम्+यत् । मास्+य। मास्य+सु । मास्यः ।
यहां द्वितीया-समर्थ, कालविशेषवाची 'मास' शब्द से भूत अर्थ में इस सूत्र से यत्' प्रत्यय है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है।
(२) मासीनः । यहां पूर्वोक्त 'मास' शब्द से भूत-अर्थ में इस सूत्र से खञ्' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से 'ख' के स्थान में 'ईन्' आदेश, अंग को पर्जन्यवत् आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। आयु अर्थ से अन्यत्र-'मासिकम्' होता है। यप्
(३) द्विगोर्यप्।८१। प०वि०-द्विगो: ५।१ यप् १।१। अनु०-कालात्, तम्, भूत, मासात्, वयसि इति चानुवर्तते। अन्वय:-कालात् तम् द्विगोर्मासाद् भूतो यप् वयसि।
अर्थ:-तम् इति द्वितीयासमर्थात् कालविशेषवाचिनो द्विगुसंज्ञकाद् मासान्तात् प्रातिपदिकाद् भूत इत्यस्मिन्नर्थे यप् प्रत्ययो भवति, वयस्यभिधेये। अत्र वयसोऽर्थबलेनाधीष्टादिष्वर्थेषु भूत इत्येवार्थोऽभिसम्बध्यते।
उदा०-द्वौ मासौ भूत:-द्विमास्य: । त्रिमास्य:।
आर्यभाषा: अर्थ-(तम्) द्वितीया-समर्थ (कालात्) कालविशेषवाची (द्विगो:) द्विगुसंज्ञक (मासात्) मासान्त प्रातिपदिक से (भूतः) हो चुका, अर्थ में (यप्) यप् प्रत्यय होता है (वयसि) यदि वहां वय: आयु अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-जो दो मास का हो चुका है वह-द्विमास्य। जो तीन मास का हो चुका है वह-त्रिमास्य।
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