Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-योजनं गच्छति-यौजनिको धावनः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (योजनम्) योजन प्रातिपदिक से (गच्छति) जाता है, अर्थ में (ठञ्) यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है।
उदा०-जो योजन (चार कोस) जाता है वह-यौजनिक धावन (दौड़नेवाला)। सिद्धि-यौजनिकः । योजन+अम्+ठञ् । यौजन्+इक। यौजनिक+सु । यौजनिकः ।
यहां द्वितीया-समर्थ योजन' शब्द से गच्छति-अर्थ में प्राग्वतेष्ठञ् (५।१।१८) से यथाविहित ठञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ' के स्थान में 'इक्' आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है।
विशेष: एक योजन, दो योजन, पांच योजन, दस योजन इत्यादि भिन्न-भिन्न दूरियों तक दोड़नेवाले धावन उन-उन नामों से प्रसिद्ध होते थे। पाणिनि ने एक योजन दौड़नेवाले धावन को यौजनिक कहा है। कात्यायन ने सौ योजन तक जानेवाले धावन के लिये यौजनशतिक' इस विशेष शब्द का उल्लेख किया है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ४०२)। ष्कन्
(२) पथः ष्कन्।७४। प०वि०-पथ: ५।१ ष्कन् १।१। अनु०-तद् गच्छति इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत् पथो गच्छति ष्कन्।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् पथिन्-शब्दात् प्रातिपदिकाद् गच्छतीत्यस्मिन्नर्थे ष्कन् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-पन्थानं गच्छति-पथिक: । स्त्री चेत्-पथिकी।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (पथ:) पथिन् प्रातिपदिक से (गच्छति) जाता है तय करता है, अर्थ में (ष्कन्) ष्कन् प्रत्यय होता है।
उदा०-पन्था मार्ग को जो तय करता है वह-पथिक । यदि स्त्री हो तो-पथिकी। सिद्धि-पथिक: । पथिन्+अम्+ष्कन्। पथि+क। पथिक+सु। पथिकः ।
यहां द्वितीया-समर्थ पथिन्' शब्द से गच्छति-अर्थ में इस सूत्र से 'कन्' प्रत्यय है। 'नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२।७) से अंग के नकार का लोप होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में प्रत्यय के षित होने से षिद्गौरादिभ्यश्च' (४।१।४१) से डीष् प्रत्यय होता है-पथिकी। प्रत्यय के नित् होने से जित्यादिर्नित्यम्' (६।४।९४) से आधुदात्त स्वर होता है-पथिकः।
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