Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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इस प्रकार से प्रकृतिसंक्रम संबन्धी उक्त समग्र वर्णन आदि की ३४ गाथाओं में किया है और उसके बाद स्थितिसंक्रम के भेद, विशेष लक्षण, उत्कृष्ट - जघन्य स्थितिसंक्रम प्रमाण, और साद्यादि - प्ररूपणा इन पाँच अर्थाधिकारों का यथाक्रम से विचार किया है उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिसंक्रम की प्ररूपणा करने के प्रसंग में स्वामित्व का भी विचार किया है तथा स्थितिसंक्रम को बताने के लिये प्रकृतियों का बंधोत्कृष्टा, संक्रमोत्कृष्टा इस प्रकार से वर्गीकरण किया है |
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इसके अनन्तर स्थितिसंक्रम की अपेक्षा मूल और उत्तर- प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा की है और इसके साथ ही स्थितिसंक्रम विषयक विवेचन पूर्ण हुआ ।
अनुभाग संक्रम का विचार भेद, विशेष लक्षण, स्पर्धक, उत्कृष्ट और जघन्य अनुभागसंक्रमप्रमाण, स्वामित्व और साद्यादि - प्ररूपणा इन सात अनुयोगद्वारों से किया है | स्पर्धक प्ररूपणा में रसस्पर्धकों के सर्वघाति, देशघाति और अघाति यह तीन प्रकार एवं स्थान संज्ञा की अपेक्षा एक स्थानक, द्विस्थानक, त्रिस्थानक और चतुःस्थानक यह चार भेद किये हैं । इन घाति और स्थान संज्ञा में कौन-कौन प्रकृतियाँ गर्भित हैं । इसका कारण सहित वर्णन किया है । तदनन्तर संक्रमापेक्षा उत्कृष्ट और जघन्य रस का प्रमाण बतलाकर उत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग संक्रम के स्वमियों का निरूपण किया है । तत्पश्चात् अनुभाग संक्रम की अपेक्षा मूल एवं उत्तर प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा पूर्वक अनुभागसंक्रम संबन्धी निरूपण पूर्ण हुआ ।
इसके बाद क्रम प्राप्त प्रदेशसंक्रम का विवेचन किया है । इस विवेचन के भेद, लक्षण, साद्यादि- प्ररूपणा, उत्कृष्ट - जघन्य प्रदेश संक्रमस्वामी यह पाँच अर्थाधिकार हैं ।
भेद अधिकार में विध्यात, उद्वलन, यथाप्रवृत्त, गुण और सर्वसंक्रम इन पाँच प्रकार के प्रदेशसं क्रमों का विस्तार से एवं संक्रम के रूप में मान्य स्तिबुक संक्रम का विवेचन किया है । इन पाँचों प्रकारों में कौन किसका बाधक है, किस क्रम से इनकी प्रवृत्ति होती है और कौन-कौन प्रकृतियाँ कब किस संक्रम के योग्य होती हैं, आदि का विस्तार से विचार किया है । तलश्चात् साद्यादि
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