________________ Pancastikaya-samgraha द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् // 2-2 // उपरोक्त पाँच भाव क्रमशः दो, नव, अट्ठारह, इक्कीस और तीन भेद वाले हैं। These are of two, nine, eighteen, twenty-one and three kinds, जीव में औदयिक आदि भावों का कर्तृत्व - The soul (jiva) as the doer (karta) of the dispositions (bhava) - कम्मं वेदयमाणो जीवो भावं करेदि जारिसयं / सो तेण तस्स कत्ता हवदि त्ति य सासणे पढिदं // 57 // कर्म वेदयमानो जीवो भावं करोति यादृशकम् / स तेन तस्य कर्ता भवतीति च शासने पठितम् // 57 // अन्वयार्थ - [कर्म वेदयमानः] कर्म को वेदता हुआ [जीवः] जीव [यादृशकम् भावं] जैसे भाव को [करोति ] करता है, [तस्य ] उस भाव का [ तेन ] उस प्रकार से [ सः] वह [कर्ता भवति ] कर्ता है - [इति च] ऐसा [शासने पठितम् ] शासन में कहा है। The soul (jiva), while experiencing the karmas, undergoes transformations in its dispositions (bhava) and, in this manner, it is the doer (karta) of those dispositions (bhava). This has been said in the Doctrine. . . . . . . . . . . . . . . 120