________________ Verse 71-72 जीव-द्रव्य के भेद - The divisions of the soul (jiva) - एक्को चेव महप्पा सो दुवियप्पो तिलक्खणो होदि / चदुचंकमणो भणिदो पंचग्गगुणप्पधाणो य // 71 // छक्कापक्कमजुत्तो उवउत्तो सत्तभंगसब्भावो / अट्ठासओ णवठ्ठो जीवो दसट्ठाणगो भणिदो // 72 // एक एव महात्मा स द्विविकल्पस्त्रिलक्षणो भवति / चतुश्चंक्रमणो भणितः पश्चाग्रगुणप्रधानश्च // 71 // षट्कापक्रमयुक्तः उपयुक्तः सप्तभङ्गसद्भावः / अष्टाश्रयो नवार्थो जीवो दशस्थानगो भणितः // 72 // अन्वयार्थ - [ स महात्मा ] वह महात्मा [ एकः एव ] एक ही है, [द्विविकल्पः ] दो भेद वाला है और [ त्रिलक्षणः भवति ] त्रिलक्षण वाला है, [चतुश्चंक्रमणः] और उसे चतुर्विध (चार गतियों में) भ्रमण-वाला [च ] तथा [ पंचाग्रगुणप्रधानः ] पाँच मुख्य गुणों से (भावों से) प्रधानता वाला [भणितः ] कहा है। [उपयुक्तः जीवः ] उपयोगी ऐसा वह जीव [षट्कापक्रमयुक्तः] छह अपक्रम (दिशाओं में गमन) सहित, [सप्तभङसद्भावः] सात भंग-पूर्वक (सद्भाववान), [अष्टाश्रयः] आठ (गुणों) के आश्रयरूप [नवार्थः] नौ-अर्थरूप और [ दशस्थानगः] दश-स्थानगत [ भणितः] कहा गया है। Such Supreme-Soul (mahatma) is essentially one. The same soul (jiva) is of two kinds; has three marks (laksana); has four states-of-existence (gati); exhibits five main qualities (guna) - dispositions (bhava). The same 141