Book Title: Panchastikay Sangraha With Authentic Explanatory Notes in English
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 436
________________ अलगाया रितुदनगर जानुमानमा भूतार्थोष उमाणसंजय केसायनोमोमाजमाधमम मिता के बुवालमार्ग सानो भनी निरोजन सर्वउपा अमामवन का भीरमणिकानमा सनाधीनशान मोमाजीपुरुषमापनयोजाते जमग्रमाग के भूतार्थ निशेम को जाजरीजी सायन को मारनौसा। जैन मिनाक कार धर्म मानशारों भाइन उददेश्य भी मान मानन्द का औपर कारमानन्द अवर्ण में लीन हो जम, अन्य कोर भौतिमा उपदेश्मनीले मानविकासवादी दर्शन को तो कोई निकम्मनीन-पानको सामान्म निभायी बनिने कुचर को जन्म संसा नहीं दी जा सकती जैनगम पार भों में विभक्त मनुमोग। करमानुभोग मानयोग, बत्मानुयोग। भानो भनुमोग दरबम-स्वरोभी में पान करातेनिनुमान से भिन्न होकर अपनी जी अपनीमानी करना है। सात अरमान जगन में दिगम्बराचार्य भगवान की पलं दे तुम भुत सुजन है आगे चौरामी मार रायोका सुजनन भागीरमरीकेसायक-गोषकोवर्धनान निभाउनमारगमों में संचाविजयाप एक अनूठा विसरवायोजन करने जाना कामजपी रात्पनिमसाल सानो कार्यचकितार की सिमामा भी सज-मनन विधि-निमामि आन-भागमा आरमारामार कायम मिला टीमामला भगवद नाचायी भइतबन्डरमानी एवं आधी जयरोनलामी बिमारितकाम' आपातके यदा रस्समो सोनकर जगति के जीपों पर मार सकार भिधारें मामी तीर्थकर मार भाचार्यो की नियुह विम- देशना अधिमान के किस्तामारने मारली भाप संबकजगकतारि-भारतीय भाषामोसेजविराजनों के लिए भी मिशताका साधन बनेन भवन-से सुकत मानीवरी चरा आराधक सरल स्वासानीचरभानकी विवानी निजमन जी के गाने परान संचारितकाम के प्रमों को जमा, भीमामा के बकर कामाममेकर प्रांजल अग्रेजी अनुवाद कर निजामन मनोमानासन का उचोलन कर जिन महिमा को पहोंचों जीमित कर दिया भीके जैन मी मलासीय है कि रात आरमस्तिति अपाभवानी गाजावान करते रहे। सर्व के नाम दिया गया हाल भवनमानना जोत का पासपीसमातिन। नमाजमा जैन दर्शनशास्थानी विहिके निक मिमा आमा रमाजजोजोजाननभाग जगा औरनजरमा.समाजमा सामान सा नमः नयामानामा भारतीय मावती सामान न सािनों की माने निधन शामामोनाडोन मिनिहारों के निशाचरी भारतमा का अनुरागीयामकी मिहिकामभक्त उति आरम एवं समस्याटेगोत्र से समापन समार सापक भार मापक भीष्माना उपेक्षा अजान की निशिटेग मारेममा बिक या मर भावों को उपेक्षा सामरमटी भूमामा का फल सम्प्रति अध्यात्म जगत में दिगम्बराचार्य भगवन् श्री कुन्दकुन्द देव अनुपम श्रुत-सृजक हैं, आपने चौरासी पाहुड (ग्रंथों) का सृजन कर वागीश्वरी के सम्यक्-कोष को वर्धमान किया है। उनके पाहुड ग्रंथों में पंचास्तिकाय एक अनूठा विश्वतत्त्व का उद्योतन करने वाला कालजयी ग्रंथ है, जिसमें सात तत्त्व, नौ पदार्थ, पंचास्तिकाय की विशद व्याख्या की है। सत्-असत्, विधि-निषेध, भाव-अभाव, अभाव-भाव, भावाभाव का व्याख्यान किया है। टीकाकर्ता भगवद् आचार्य श्री अमृतचन्द्र स्वामी एवं आचार्य श्री जयसेन स्वामी ने 'पंचास्तिकाय' ग्रंथराज के गूढ रहस्य को खोलकर जगति के जीवों पर महत् उपकार किया है। - श्रमणाचार्य विशुद्धसागर मुनि ISBN 978-81-932726-5-7 Rs.: 750/ विकल्प Vikalp Printers

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