Book Title: Panchastikay Sangraha With Authentic Explanatory Notes in English
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers
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________________ Pancastikaya-samgraha गाथा --- Verse No. Page 93 181 133 143 249 270 269 142 146 275 167 318 33 78 134 86 169 147 277 122 231 87 170 29 71 जम्हा उवरिट्ठाणं सिद्धाणं जम्हा कम्मस्स फलं विसयं जस्स जदा खलु पुण्णं जोगे जस्स ण विज्जदि रागो दोसो जस्स ण विज्जदि रागो दोसो मोहो जस्स हिदयेणुमेत्तं वा जह पउमरायरयणं खित्तं खीरे जह पुग्गलदव्वाणं बहुप्पयारेहि जह हवदि धम्मदव्वं तह त जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो जाणदि पस्सदि सव्वं इच्छदि जादो अलोगलोगो जेसिं जादो सयं स चेदा सव्वण्हू जायदि जीवस्सेवं भावो जीवसहावं णाणं अप्पडिहददंसणं जीवा अणाइणिहणा संता जीवाजीवा भावा पुण्णं पावं जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा जीवा पुग्गलकाया आयासं जीवा पुग्गलकाया अण्णोण्णाजीवापुग्गलकाया धम्माधम्मा जीवा पुग्गलकाया सह सक्किरिया जीवा संसारत्था णिव्वादा जीवो त्ति हवदि चेदा जीवो सहावणियदो जूगागुंभीमक्कणपिपीलिया जे खलु इंदियगेज्झा विसया 130 241 154 293 53 113 108 210 11 135 178 98 188 109 212 27 64 155 295 115 220 99 190 336

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