Book Title: Panchastikay Sangraha With Authentic Explanatory Notes in English
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers
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________________ Pancastikaya-samgraha गाथा --- Verse No. Page 85 168 56 118 221 उदयं जह मच्छाणं उदयेण उवसमेण य उद्दसमसयमक्खियमधुकरभमरा उप्पत्ती व विणासो दव्वस्स उवओगो खलु दुविहो उवभोज्जमिंदिएहिं य उवसंतखीणमोहो मग्गं 11 24 90 163 139 71 141 102 196 112 217 120 228 81 160 एक्को चेव महप्पा सो एदे कालागासा एदे जीवणिकाया पंचविहा एदे जीवणिकाया देहप्पविचारमस्सिदा एयरसवण्णगंधं दो फासं एवमभिगम्म जीवं अण्णेहिं एवं कत्ता भोत्ता होजं एवं पवयणसारं पंचत्थियसंगहं एवं भावमभावं भावाभावं एवं सदो विणासो असदो एवं सदो विणासो असदो जीवस्स 123 233 69 138 200 103 21 47 43 54 115 ओगाढगाढणिचिदो पोग्गलकायेहिं 64 131 28 69 कम्ममलविप्पमुक्को उ8 लोगस्स कम्मस्साभावेण य सव्वण्हू 151 285 . . . . . . . . . . . . . . 334

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