Book Title: Panchastikay Sangraha With Authentic Explanatory Notes in English
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers
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________________ Pancastikaya-samgraha गाथा --- Verse No. Page 170 322 23 109 106 205 107 207 34 79 सपयत्थं तित्थयरं अभिगदबुद्धिस्स सब्भावसभावाणं जीवाणं समओ णिमिसो कट्ठा कला समणमुहुग्गदमटुं चदुग्गदिणिवारणं समवत्ती समवाओ अपुधब्भूदो समवाओ पंचण्ह समउ सम्मत्तणाणजुत्तं चारित्तं सम्मत्तं सद्दहणं भावाणं सव्वत्थ अस्थि जीवो ण य सव्वे खलु कम्मफलं थावरकाया सव्वेसिं खंधाणं जो अंतो सव्वेसिं जीवाणं सेसाणं सस्सदमध उच्छेदं भव्वमभव्व संठाणा संघादा वण्णरसप्फासगंधसद्दा संबुक्कमादुवाहा संखा सिप्पी संवरजोगेहिं जुदो तवेहिं जो सिय अत्थि णत्थि उहयं सुरणरणारयतिरिया सुहदुक्खजाणणा वा हिदपरियम्म सुहपरिणामो पुण्णं असुहो सो चेव जादि मरणं जादि 151 176 37 85 126 237 114 219 144 272 14 29 117 125 222 236 246 132 18 41 150 285 हेदुमभावे णियमा जायदि हेदू चदुव्वियप्पो अट्ठवियप्पस्स 149 283 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . 340

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