Book Title: Panchastikay Sangraha With Authentic Explanatory Notes in English
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers
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________________ Pancastikaya-samgraha गाथा --- Verse No. Page --- 169 320 172 326 तम्हा णिव्वुदिकामो णिस्संगो तम्हा णिव्वुदिकामो रागं सव्वत्थ ति त्थावरतणुजोगा अणिलाणलकाइया तिसिदं बुभुक्खिदं वा दुहिदं ते चेव अस्थिकाया 111 215 137 254 16 164 313 दवियदि गच्छदि ताई ताई दव्वं सल्लक्खणयं दव्वेण विणा ण गुणा दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गो दंसणणाणसमग्गं झाणं णो दंसणणाणाणि तहा जीवणिबद्धाणि दसणमवि चक्खुजुदं अचक्खुजुदमवि देवा चउण्णिकाया मणुया 152 288 52 111 42 94 118 224 83 164 160 304 धम्मत्थिकायमरसं अवण्णगंधं धम्मादीसद्दहणं सम्मत्तं धम्माधम्मागासा अपुधब्भूदा धरिदुं जस्स ण सक्कं चित्तुब्भामं 96 184 168 319 12 27 Co 144 पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्ता पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसबंधेहिं पाणेहिं चदुहिं जीवदि पुढवी य उदगमगणी वाउवणप्फदि 73 110 214 . . . . . . . . . . . . . . . 338

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