________________ Pancastikaya-samgraha Acarya Kundakunda's Samayasara: सोवणियं पि णियलं बंधदि कालायसं पि जह पुरिसं / बंधदि एवं जीवं सुहमसुहं वा कदं कम्मं // 4-2-146 // जैसे सोने की बेड़ी भी पुरुष को बांधती है और लोहे की बेड़ी भी बांधती है। इसी प्रकार शुभ या अशुभ किया हुआ कर्म जीव को बांधता है (दोनों ही बन्धनरूप हैं)। Just as the shackle, whether made of gold or iron, confines a man, similarly the karma, whether auspicious (subha) or inauspicious (asubha), binds the soul (jiva)-both kinds of karmas are bondage. शुद्धात्मा की अनुपलब्धि में राग का हेतुपना - Attachment (raga) hinders the attainment of pure soul-substance - जस्स हिदयेणुमेत्तं वा परदव्वम्हि विज्जदे रागो / सो ण विजाणदि समयं सगस्स सव्वागमधरो वि // 167 // यस्य हृदयेऽणुमात्रो वा परद्रव्ये विद्यते रागः / स न विजानाति समयं स्वकस्य सर्वागमधरोऽपि // 167 // अन्वयार्थ - [यस्य हृदये] जिसके हृदय में [ परद्रव्ये] परद्रव्य के प्रति [अणुमात्रः वा] अणुमात्र भी (लेशमात्र भी) [रागः] राग [विद्यते] वर्तता है [ सः ] वह [ सर्वागमधरः अपि] भले ही सर्व आगमधर हो तथापि [स्वकस्य समयं न विजानाति ] स्वकीय समय को नहीं जानता (अनुभव नहीं करता)। . . . . . . . . . . . . . . . . 318