________________ Verse 128-129-130 जीव-पुद्गल का संयोग ही अन्य सात पदार्थों का बीज है - Intermingling of the soul (jiva) and the matter (pudgala) is the seed for the rest of seven objects (padartha) - जो खलु संसारत्थो जीवो तत्तो दु होदि परिणामो / परिणामादो कम्मं कम्मादो होदि गदिसु गदी // 128 // गदिमधिगदस्स देहो देहादो इंदियाणि जायते / तेहिं दु विसयग्गहणं तत्तो रागो व दोसो वा // 129 // जायदि जीवस्सेवं भावो संसारचक्कवालम्मि / इदि जिणवरेहिं भणिदो अणादिणिधणो सणिधणो वा // 130 // यः खलुसंसारस्थो जीवस्ततस्तु भवति परिणामः / परिणामात्कर्म कर्मणो भवति गतिषु गतिः // 128 // गतिमधिगतस्य देहो देहादिन्द्रियाणि जायते / तैस्तु विषयग्रहणं ततो रागो वा द्वेषो वा // 129 // जायते जीवस्यैवं भावः संसारचक्रवाले / इति जिनवरैर्भणितोऽनादिनिधिनः सनिधनो वा // 130 // अन्वयार्थ - [यः] जो [खलु] वास्तव में [ संसारस्थः जीवः] संसार-स्थित जीव हैं, [ततः तु परिणामः भवति ] उस (संसार-स्थिति) से परिणाम होता है (अर्थात् उससे रागादिरूप स्निग्ध परिणाम होता है), [परिणामात् कर्म ] परिणाम से कर्म और [कर्मणः ] कर्म से [गतिषुः गतिः भवति ] गतियों में गमन होता है। [गतिम् अधिगतस्य देहः ] गति-प्राप्त को देह होती है, [ देहात् इन्द्रियाणि जायंते ] देह से इन्द्रियाँ होती हैं, [तैः तु विषयग्रहणं] इन्द्रियों से . . . . . . / . . . . . . .. 241