Book Title: Panchastikay Sangraha With Authentic Explanatory Notes in English
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 367
________________ Verse 154-155 Acarya Kundakunda's Pravacanasara: संपज्जदि णिव्वाणं देवासुरमणुयरायविहवेहिं / जीवस्स चरित्तादो दंसणणाणप्पहाणादो // 1-6 // जीव को चारित्रगुण के आचरण से मोक्ष प्राप्त होता है। कैसे चारित्र से? सम्यग्दर्शन-ज्ञान हैं मुख्य जिसमें। किन विभूतियों सहित मोक्ष पाता है? स्वर्गवासी देव, पातालवासी देव तथा मनुष्यों के स्वामियों की संपदा सहित। The soul attains liberation (nirvana, moksa) by virtue of conduct (caritra), characterized by right faith (samyagdarsana) and right knowledge (samyagjnana). The path to liberation is accompanied by the glory of the lords of the heavenly devas (kalpavasi deva), other devas (bhavanavasi, vyantara and jyotiska deva), and humans. आत्मा के शुद्ध स्वभाव को ग्रहण करने से कर्मों का क्षय होता है - Conduct based on the own-nature of the soul leads to the destruction of karmas - जीवो सहावणियदो अणियदगुणपज्जओध परसमओ / जदि कुणदि सगं समयं पब्भस्सदि कम्मबंधादो // 155 // जीवः स्वभावनियतः अनियतगुणपर्यायोऽथ परसमयः / यदि कुरुते स्वकं समयं प्रभ्रस्यति कर्मबन्धात् // 155 // अन्वयार्थ - [जीवः ] जीव [ स्वभावनियतः] (द्रव्य-अपेक्षा से) स्वभावनियत होने पर भी [अनियतगुणपर्यायः अथ परसमयः] यदि अनियत गुण-पर्याय वाला हो तो परसमय है। [ यदि] यदि वह [स्वकं समयं कुरुते] (नियत गुण-पर्याय से परिणमित होकर) स्वसमय को करता है तो [कर्मबन्धात् ] कर्मबन्ध से [प्रभ्रस्यति ] छूटता है। . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 295

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