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प्राक्कथन श्रीमत्सोमोवसूरि-फत नोतियाक्यामृत' वि. की ग्यारहयो शताब्दी का रचा हुभा है । इम समय राजनीति फालानुसार परिपक्वावस्था को प्राप्त हो चुकी थी । यह साधारण धारणा कि 'मापीन युग में राजनीति को कोई स्थान नहीं था और न विद्वानों की इसमें ममिचि ही थी' कोई बजनहार उति. प्रक्षोस नहीं होती । निस्सन्देह हमारा देश धर्मप्रधान रहा है और इसलिये इतिहास के मादिकाल से जो भी क्रान्तियां समाज में हुई वे धार्मिक रूपमें धर्मावरण में तथा धार्मिक मंचसे ही हुई', मनके संचालक भी धार्मिक नेता के रूप में ही हमारे सन्मुख आये और क्रांतियों में फलीभूत होने पर पनकी देवताओं की भौति पूजा भी हुई। यदि प्राचीन क्रांतिकारियों को धार्मिक परमे से न देख कर शुद्ध लौकिक दृष्टि से देखें को यह वध्य साफ दिखाई देने लगेगा और फिर राम कृष्ण बुद्ध महाबोर व शराकार्य माद सब हमें समाजके क्रांतिकारीके रूपमें ही दीखने लगेंगे उसी प्रकार जिसप्रकार कि माज महात्मा गांधी जवाहरलाल
सुभाषचन्द्र बोस भावि दिखाई देते हैं। कि जिस समय उनका बहो संभ उस समय नोक नेताओं को चाहे थे समाज के किसी भी पहल को कुएं अषियों की उपवियोंसे विभूषित किया जाता था। यह उनकी विद्वत्ता का सही सम्मान था, क्योंकि उस समय जनता-जनादेन में संवाका जितना मुल्य था। सतना अर्थ संचय का नहीं । अथे विधा के चरणों में खोटता था बड़े से बड़ा धनवान विद्वान क परणस्पर्श कर.अपना कल्याण समझता था, ऐसे ही ऋषि मुनियों में उस समय भारत के विधान मिलते.थे, जिनकी एक एक कृति अनुपम, अलौकिक तथा मौलिक रचना-युक्त होती थी।
राजनीविसमाज-शास्त्र का ही भग सदेव से रहा है और माज भी इसे समाजशास्त्र (SociolOLy) से सम्बन्धित माना जाता है। अतः यदि समाज-व्यवस्था के भादि युग में शुद्धराजनीति का कोह प्रस्थ नहीं मिलता, तो आश्चर्य की कोई बात नहीं, किन्त राजनीति पर चचा ही नहीं हुई हो, विद्वानों ने इस पर कोई विचार ही नहीं किया हो, सो बात नहीं है । अव से मानवन एक समाज रूप में सामकि जीवन बिताना प्रारम्भ किया, तभी से प्रत्येक व्यक्ति और समाज के बीच कत्तव्यों पर होने लगी सथा जब से राज्य कायम हुए सभी से 'राजन् के अधिकार तथा कर्तव्यों पर विवेचना शुरू हो गई, ऐसा प्राचीन ग्रन्थों के माधार पर कहा जासकता है। 'राजन' शब्द का प्रयोग राज्यो के गठन के साथ साथ ही प्रारंभ हुभा मालूम होता है । इतिहास के धुधले युग से जिसकी जानकारी के लिये हमारे पास माज भी उपयुक्त सामग्री नहीं है, हम 'राजन्' शब्द का प्रयोग देखते हैं। किन्तु हमारे पास आज इस 11* पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं, कि हमारे देश में राजतंत्र के समानान्तर गणराज्य भी बहुत प्राचीन काल में
है। ईसवी सम् से सैकड़ों वर्ष पूर्व भी हम को अपने देश में छोटे छोटे गणराम्य मिलते हैं। पूनान के . भाक्रान्ता सिकन्दर के भारत भारोहण के समय भी पंजाब में ही मालगिक, झुबक प्रादि कई गणराज्य