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प्रति विजिगीपु-कर्तव्य, शत्र को भूमि फल (धाम्यादि उपज) और भूमि देने से लाभ-हानि, चक्रवती होनेका कारण, वीरतासे लाभ, साम-प्रादि चार उपाय, सम्म नीतिका भेद पूर्वक लक्षण, दान, भेद और पंछनीतिका स्वरूप, शत्रुके यहांसे पाये हुए दुनके प्रति राज-कर्तव्य सौर इसका शान्त, शत्रुके निकट सम्बन्धोके गृह प्रवेशसे हानि, उत्तम लाभ, भूमि लामकी श्रेष्ठता, मैत्री-भावको प्राप्त हुए शत्रके प्रति कर्तव्य, विजिगीपुको निन्दाका कारण, शत्रु-चेष्टा जानने का उपाय, शत्र सिमहके उपरान्त विजिगीपका कर्तव्य, प्रतिद्वन्दी पर विश्वाम करने के साधन, शत्रु पर बढ़ाई न करनेका अवसर, विजिगीषुका सर्वोत्तम लाभ, अपराधियों के अनुग्रह-निमहसे हानि-लाभ, नैतिक व्यक्तिका सभा फर्तव्य, श्रम सर. होनेसे हानि, सभाके दोष, गृह में पाये हुए धनके बारेमें, धनार्जनका अपाय, देव नीतिका निर्णय, प्रशस्त भूमि, राक्षसी वृत्तियाले या पर प्रणेय राजाका स्वरूप, माज्ञा पालन
योग्य स्वामो, प्राम-दुषित धन तथा धन प्राप्तिक भेद ३. युद्ध-समुदेश
३०६-४०५ मंत्री व मित्रके दूपण, भूमि रक्षार्थ विजिगीष की नैतिक व पराक्रम शक्ति, शस्त्र युद्धका मौका, बुद्धि युद्ध की सोदाहरण सलता, माहात्म्य, डरपोक, भतिक्रोध, युद्ध कालीन राज-कर्तव्य, भाग्य-माहात्म्य, पलिष्ठ शत्रु द्वारा प्राकान्त राज कर्तव्य, भाग्यकी अनुकूलता, सार-प्रसार सैन्यसे साभ-हानि, युद्धार्थ राज प्रस्थान, प्रतिग्रह स्वरूप, सप्रतिपद सैन्यसे लाभ, युद्धकालोन गृष्ठ भमि. जस माहात्म्य, शक्तिशालीके साथ युद्ध करनेसे हानि. राज-कर्तव्य ( सामनाति १ दृष्टान्त ) एवं म खंका कार्य सदृष्टान्त ।
३८-३६ - प्रशस्त व्यय, त्याग-माहान्य, बलिष्ठ शव को धन न देनेका परिणाम, उसे धन देनेका मरीका, शत्रु द्वारा आकान्त राजकीय स्थिति सरष्टान्त, स्थान-प्रष्ट राजा, मर्माप्ट-माहात्म्य, दौंड साय शत्र सदृष्टान्त, शक्ति और प्रताप-होन शन सदृष्टान्त, शत्र की बिकनी-चूण्डी बातों में पानेका निषेध, नौसिशास्त्र स्वरूप, अकेले विजिगीषु को युद्ध करने तथा अपरोक्षिप्त शत्र-भूमिम जाने मानेका निषेध, युद्ध और उसके पूर्व कालीन राजकतम्य, विजयश्री प्राप्त कराने वाला मंत्र, स्त्रक कुटुम्बियों को अपने पक्षमें मिलाना, शत्रु द्वारा शत्र के नाशका परिणाम ष दृष्टान्त व अपराधी सबके प्रति राजनीति व इष्टान्त
३१-३६ - विजय प्राप्तिका उपाय, शक्तिशाली विजिगीषु का कर्तव्य और इसकी उन्नति, सन्धि करने लायक शत्र, पराक्रम करने षाला तेज, लघु व शक्तिशाली विजिगीष का बलिष्ठसे युद्ध करनेका परिणाम व एष्टान्त, पराजित शा के प्रति राजनीति, शूरवीर शत्रुके सम्मानका दुष्परिणाम, समान और अधिक शक्तिशाजी के साथ युद्ध करनेसे हानि, धर्म, नरेभ व असुर विजयो राजाका स्वरूप, असुर विजयीके प्रामय से हानि, श्रेष्ठ पुरुषके सानिधानसे लाभ, निहत्थे शत्रु पर शस्त्रप्रहारकी कड़ी मालोचना, युद्ध भ मिसे भागने वाले शत्र भोंके प्रति राजनीति तथा शत्रु भूत राजामोकी भन्य बन्दीभूत राजाओंसे मेंट मनुष्य मात्रको बुद्धि-रूप नहीका बहाव, उत्तम पुरुषों के वचनोंकी प्रतिष्ठा, सत-असत् पुरुषों के व्यवहार का नया लोको प्रतिष्ठाका साधन, नैतिक वाणीका माहात्म्य, मिथ्या वचनोंका दुष्परिणाम, विश्वासगत व विश्वासघातीको कट अजोचना, झूठी शपथका दुष्परिणाम, मैन्यकी व्यूह रचना, उसकी